राजस्थान में सरकारी कर्मचारियों के लिए तबादला नीति एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन चुकी है। गहलोत सरकार ने अपने कार्यकाल में 13 बार तबादला नीति की घोषणा की, लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया जा सका। विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने इसे अपना सियासी मास्टरस्ट्रोक बनाते हुए सत्ता में आने के 100 दिन के भीतर नीति लागू करने का वादा किया। लेकिन सत्ता में आने के बाद यह वादा अधूरा ही रहा।
नीति न होने से कर्मचारियों को परेशानी
शिक्षा, चिकित्सा, विद्युत, जलदाय और पंचायतीराज सहित कई विभागों के कर्मचारी तबादलों का इंतजार कर रहे हैं। बिना स्पष्ट नीति के कभी तबादले शुरू हो जाते हैं और कभी अचानक बंद कर दिए जाते हैं। जबकि पंजाब, हरियाणा, केरल और दिल्ली जैसे राज्यों में विभिन्न विभागों के लिए तबादला नीति पहले से लागू है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, राजस्थान में हर साल करीब 13,000 तबादला मामलों के कारण न्यायालयों और सिविल सेवा अपील अधिकरण में मामले दर्ज होते हैं।
तबादला नीति का सफर
- 1994: तबादला नीति बनाने के लिए पहली बार कमेटी बनी।
- 2015-18: मंत्री गुलाबचंद कटारिया की अध्यक्षता में प्रयास किए गए।
- 2020: गहलोत सरकार ने 3 जनवरी को नीति बनाने का आदेश दिया। सेवानिवृत्त आईएएस ओंकार सिंह की अध्यक्षता में कमेटी ने अगस्त में रिपोर्ट पेश की।
- 2024: भाजपा सरकार ने केंद्र की तर्ज पर नीति बनाने का वादा किया, लेकिन रिपोर्ट तक नहीं आई।
एक साल में किए गए दावे
- तबादलों के लिए केंद्र सरकार की तर्ज पर नीति बनाई जाएगी।
- ऑनलाइन पोर्टल शुरू किया जाएगा, जहां तय महीने में आवेदन किया जा सके।
- प्रोबेशनकाल में तबादला नहीं होगा।
- ग्रामीण क्षेत्र में सेवा का अनुभव अनिवार्य होगा।
जनप्रतिनिधियों की डिजायर का दबदबा
सरकारी तबादलों में जनप्रतिनिधियों की सिफारिशों को अधिक महत्व दिया जाता है। इससे जुड़े गंभीर आरोप कई बार लगाए गए हैं, जिससे पारदर्शिता पर सवाल खड़े होते हैं।
दूसरे राज्यों में क्या व्यवस्था?
- हरियाणा: 2017 से ऑनलाइन तबादला प्रणाली लागू।
- उत्तर प्रदेश: तबादलों के लिए 5 जिलों के विकल्प मांगे जाते हैं।
- दिल्ली: अधिकतर विभागों में केवल अगस्त में तबादले होते हैं।
कर्मचारियों की मांग
सरकार को जल्द से जल्द स्पष्ट तबादला नीति लागू करनी चाहिए, जिससे कर्मचारियों को जनप्रतिनिधियों के चक्कर लगाने की मजबूरी से राहत मिल सके।