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मल्टी मिलेनियर इंजीनियर हर्षाली कोठारी छोड़ेंगी 32 लाख रुपए का पैकेज, लेंगी जैन धर्म की दीक्षा

हर्षाली कोठारी, एक समय में सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग के क्षेत्र में सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंच चुकीं थीं। वे एक अमेरिकी मल्टीनेशनल कंपनी, एडोब में 32 लाख रुपये सालाना पैकेज पर काम कर रही थीं और दुनियावी सुखों में पूरी तरह संतुष्ट थीं। लेकिन अब, हर्षाली ने एक बड़ा और साहसिक कदम उठाते हुए, अपनी सारी भौतिक सुख-सुविधाएं छोड़ने का फैसला किया है।

दीक्षा की ओर पहला कदम:
अब, 28 साल की हर्षाली कोठारी 3 दिसंबर को जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण करने जा रही हैं। वे एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर होने के साथ-साथ अब आध्यात्मिक साधिका भी बन चुकी हैं। इस दीक्षा के माध्यम से वे जैन परिव्रज्या अंगीकार करेंगी और अपना जीवन संयम, साधना और आत्मिक शांति की ओर मोड़ देंगी।

आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत:
हर्षाली का जन्म ब्यावर में हुआ था। उन्होंने स्कूली शिक्षा यहीं से प्राप्त की और फिर बी-टेक की डिग्री हासिल की। इसके बाद, उन्होंने बेंगलुरु स्थित एडोब कंपनी में इंजीनियर के रूप में काम शुरू किया। लेकिन, जैसे-जैसे उनका करियर आगे बढ़ा, उनका मन एक नई दिशा की ओर आकर्षित होने लगा।

आचार्य रामलाल से मिलन और बदलाव:
कुछ साल पहले हर्षाली की मुलाकात आचार्य रामलाल से हुई। उन्होंने आचार्य जी के चातुर्मास में भाग लिया, और इसके बाद उनके जीवन में बदलाव आने लगा। आचार्य जी के प्रभाव में आकर हर्षाली ने भौतिक सुख-संसार को छोड़ने और आत्मिक शांति की ओर कदम बढ़ाने का निर्णय लिया।

वैराग्य और साधना की ओर कदम:
हर्षाली के अनुसार, “मुझे महसूस हुआ कि जीवन में केवल भौतिक सुख से कहीं अधिक महत्वपूर्ण आत्मिक शांति है।” जॉब छोड़ने के बाद, हर्षाली ने यात्रा करने के लिए फ्लाइट की बजाय पैदल चलना शुरू किया, जो उनके अंदर गहरी मानसिकता और साधना को दर्शाता है।

तीर्थंकर तुल्य जीवन की ओर:
हर्षाली अब जैन धर्म के सिद्धांतों में पूरी तरह डूब चुकी हैं। उनका जीवन अब संयमित और साधारण हो चुका है। वे आत्मान्वेषण और ध्यान पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।

दीक्षा का आयोजन:
हर्षाली को 3 दिसंबर को जैन भगवती दीक्षा प्राप्त होगी। यह दीक्षा समारोह नरबद खेड़ा स्थित केडी विद्यालय परिसर में आयोजित होगा, जिसमें आचार्य रामलाल के सान्निध्य में हर्षाली आधिकारिक रूप से जैन संन्यासिनी बन जाएंगी।

समाज के लिए प्रेरणा:
हर्षाली का यह निर्णय समाज के लिए एक प्रेरणा बन गया है। आज के समय में एक युवा महिला का भौतिक सुखों को छोड़कर आध्यात्मिकता की राह अपनाना एक साहसिक कदम है। उनका यह कदम सिद्ध करता है कि असली सुख भौतिक वस्तुओं में नहीं, बल्कि आत्मिक संतोष और शांति में मिलता है।

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