
हाड़ौती क्षेत्र के मोईकलां खड़िया पंचायत के छोटे से अरनिया गांव की स्थिति बेहद अनोखी है। यहां के ग्रामीणों का आधा काम कोटा जिले में तो आधा काम बारां जिले में होता है। ग्रामीण लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि गांव को स्थायी रूप से या तो कोटा जिले में या बारां जिले में शामिल कर दिया जाए।
इतिहास और वर्तमान स्थिति
- जागीरी प्रथा का हिस्सा: अरनिया गांव पहले जागीरी प्रथा का हिस्सा था।
- जिलों में बदलाव: पहले यह कोटा जिले का हिस्सा था, लेकिन बारां जिले की स्थापना के बाद इसे बारां में शामिल कर लिया गया।
- वापस कोटा में शामिल: करीब 18 साल पहले इसे सांगोद तहसील और कोटा जिले में वापस जोड़ा गया।
समस्याएं और कठिनाइयां
- बिजली और जमीन के काम अलग जिलों में: बिजली से जुड़े कार्यों के लिए ग्रामीणों को बारां जाना पड़ता है, जबकि जमीन और अन्य कार्यों के लिए सांगोद, कोटा जाना होता है।
- बैंकिंग समस्याएं: किसान क्रेडिट कार्ड या ऋण के लिए ग्रामीणों को कोटा और बारां, दोनों जिलों के बैंकों का सहारा लेना पड़ता है।
- सरकारी सुविधाओं की कमी: गांव में सिर्फ 8वीं तक का स्कूल है, लेकिन वह भी अक्सर बंद रहता है। चिकित्सा सुविधा के नाम पर कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं है।
गांव की विशेषताएं
- परवन नदी की देन: परवन नदी के किनारे स्थित गांव की जमीन उपजाऊ है, जिससे यहां के किसान संपन्न हैं।
- मंदिर का महत्व: गांव में भगवान लक्ष्मीनाथ और माता का मंदिर है, जहां हर परिवार का सदस्य सुबह दर्शन करने जाता है।
- सामूहिक दीपावली: दीपावली पर गांव के सभी लोग मंदिर के पास इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से मिठाई और पटाखे साझा करते हैं।
- मेहमान भगवान समान: गांव में आने वाले हर मेहमान को विशेष सम्मान दिया जाता है। बेटियों को ससुराल भेजते और लाते समय पूरे गांव की महिलाएं उनका साथ देती हैं।
ग्रामीणों की मांग
ग्रामीणों का कहना है कि इस समस्या का स्थायी समाधान होना चाहिए। गांव को या तो कोटा जिले में या बारां जिले में पूरी तरह से शामिल कर दिया जाए, ताकि काम-काज में हो रही परेशानियों से निजात मिल सके।
निष्कर्ष
अरनिया गांव अपनी परंपराओं और समृद्धि के लिए जाना जाता है, लेकिन दो जिलों में बंटा होने के कारण ग्रामीण कई कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। ग्रामीणों को उम्मीद है कि उनकी मांग जल्द पूरी होगी।