लखेश्वर यादव की सफलता एक प्रेरणा बन गई है। उन्होंने यह साबित किया कि दिव्यांगता किसी के सपनों को पूरा करने में बाधा नहीं बन सकती। लखेश्वर ने तीसरे प्रयास में CGPSC की परीक्षा पास की और डिप्टी कलेक्टर बने।
लखेश्वर बताते हैं, “मैं विकलांग हूं, लेकिन मुझे इसका कोई अफसोस नहीं है। मेरे जैसे दोस्तों को सिर्फ अपनी सोच बदलने की जरूरत है। सफलता पाने के लिए हाथ-पैर की नहीं, बल्कि हौंसले की जरूरत होती है।”
शिक्षा और संघर्ष
लखेश्वर ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई सरस्वती शिशु मंदिर से की और बाद में बिलासपुर के साइंस कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। इसके बाद, जांजगीर में रहते हुए उन्होंने प्रदान एकेडमी से कोचिंग ली और CGPSC की परीक्षा की तैयारी की।
परिवार का समर्थन और संघर्ष
लखेश्वर के पिता रेलवे में ग्रुप डी के कर्मचारी थे। वह हमेशा उन्हें शिक्षक बनने की सलाह देते थे, लेकिन लखेश्वर का सपना कुछ और था। उन्होंने ठान लिया कि वह सिविल सर्विसेज की तैयारी करेंगे और एक बड़ा अफसर बनेंगे। उनका यह सपना अब हकीकत बन चुका है।
पढ़ाई का तरीका
लखेश्वर रोजाना 6 घंटे पढ़ाई करते थे और छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित कर उन्हें पूरा करते थे। पहले प्रयास में उन्होंने प्री परीक्षा पास की, लेकिन दूसरे प्रयास में सफलता नहीं मिली। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और तीसरे प्रयास में उनका चयन डिप्टी कलेक्टर के रूप में हुआ।
प्रेरणा स्रोत बने लखेश्वर
अब लखेश्वर यादव गांव के युवाओं के लिए प्रेरणा बन चुके हैं। उन्होंने यह दिखाया कि शारीरिक रूप से स्वस्थ न होने के बावजूद कड़ी मेहनत और लगन से किसी भी मुश्किल परीक्षा को पास किया जा सकता है। लखेश्वर ने युवाओं से कहा, “अगर आप सही दिशा में मेहनत करें तो किसी भी परीक्षा में सफलता पा सकते हैं।”