पं. हरिप्रसाद चौरसिया का संगीत, समाज और राजनीति पर विचार
सुप्रसिद्ध बांसुरी वादक पद्म विभूषण पं. हरिप्रसाद चौरसिया ने एक खास बातचीत में अपनी जिंदगी, संगीत और समाज से जुड़ी बातों को साझा किया। उन्होंने कहा, “मैं तो अब भी बांसुरी बजाना सीख रहा हूं। जब तक सांस चलेगी, हरि का रियाज चलता रहेगा। यह ईश्वर से जुड़ने का एक जरिया है। अगर नई पीढ़ी इस पर ध्यान दे, तो उसे मन के भीतर बैठे भगवान के दर्शन जरूर होंगे।”
गुरुकुल परंपरा की प्रासंगिकता
पं. हरिप्रसाद चौरसिया ने बताया कि संगीत साधना एक योग है और इसके लिए हर शहर में गुरुकुल होने चाहिए। उन्होंने कहा, “यहां से जीवन की तालीम मिलती है। जैसे धार्मिक स्थलों पर करोड़ों खर्च होते हैं, वैसे ही गुरुकुल बनाने के लिए भी प्रयास होना चाहिए, ताकि हमारी संस्कृति और परंपराएं जीवित रहें।”
बांसुरी वादन से परिवार का विरोध
पं. चौरसिया ने कहा कि जब वे बांसुरी बजाते थे, तब उनका परिवार खुश नहीं था। उनका परिवार चाहता था कि वे पहलवानी करें, लेकिन वे बांसुरी बजाने में लगे रहते थे। उन्होंने कहा, “पहलवान बनने के बारे में कभी सोचा भी नहीं था। बांसुरी के सुरों से ही मुझ पर हरि की कृपा हुई।”
अब संगीत के घराने क्यों नहीं बनते?
पं. चौरसिया ने बताया कि वे और उनके साथी दो गुरुकुल बना चुके हैं, जहां बड़ी संख्या में लोग संगीत की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। अब बांसुरी वादन केवल पुरुषों तक सीमित नहीं है, महिलाएं भी इस विधा में अच्छा काम कर रही हैं।
ओशो से मुलाकात और प्रेरणा
पं. चौरसिया ने बताया कि उनकी ओशो से मुलाकात पागल बाबा के आश्रम में हुई थी। ओशो वहां नाश्ता करने आते थे और पं. चौरसिया उनके साथ बातें करते थे। पं. चौरसिया ने कहा, “कभी नहीं सोचा था कि वही मित्र एक दिन विश्व प्रसिद्ध आचार्य ओशो बन जाएंगे।”
जाति-धर्म और भेदभाव
पं. चौरसिया ने कहा कि उन्होंने कभी जाति-धर्म और भेदभाव के बारे में नहीं सोचा। उन्होंने बाबा अलाउद्दीन खां के मैहर घराने से संगीत की दीक्षा ली थी और वहां एक छोटे कमरे में पं. रविशंकर और अन्य संगीतज्ञ साथ रहते थे। उन्होंने कहा कि राजनीति से दूर रहकर युवाओं को संगीत और खेल में ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
जबलपुर से जुड़ाव
पं. चौरसिया ने जबलपुर से अपने जुड़ाव को साझा करते हुए कहा, “जबलपुर आकर मां नर्मदा में छलांग लगाने का मन करता है। पहले जब भी यहां आता था, नर्मदा के शीतल जल में छलांग लगाना बहुत अच्छा लगता था। अब भी नर्मदा दर्शन के लिए जरूर जाऊंगा।”