ए राजा की टिप्पणी से विवाद
सदन में अपने भाषण के दौरान ए राजा ने सत्ता पक्ष पर निशाना साधते हुए आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया। सत्ता पक्ष के सांसदों ने इसका विरोध किया और राजा से माफी की मांग की। खुद को घिरता देख ए राजा ने कहा कि उनकी टिप्पणी को संसद की कार्यवाही से हटा दिया जाए। पीठासीन अधिकारी जगदंबिका पाल ने उनकी टिप्पणियों को हटाने का आदेश दिया।
दो-राष्ट्र सिद्धांत पर बयान
ए राजा ने अपने संबोधन में दावा किया कि दो-राष्ट्र सिद्धांत की शुरुआत मुहम्मद अली जिन्ना ने नहीं, बल्कि वीर सावरकर ने की थी। इस पर एनडीए सांसदों ने कड़ी आपत्ति जताई। राजा ने यह भी कहा कि भाजपा के एक नेता ने लोकसभा चुनाव से पहले भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की बात कही थी। एनडीए सांसदों ने राजा से अपने दावों के सबूत पेश करने की मांग की।
केंद्र सरकार पर आरोप
ए राजा ने सरकार पर संविधान के मूल ढांचे को कमजोर करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने आपातकाल के दौरान केवल लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाया था, लेकिन मौजूदा सरकार ने संविधान के छह मूल तत्वों- लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, कानून का शासन, समानता, संघीय ढांचा और स्वतंत्र न्यायपालिका पर हमला किया है।
उन्होंने कहा, “1973 के केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत को स्पष्ट किया था। इन छह तत्वों को कोई छू नहीं सकता।”
एनडीए की आपत्ति
सत्ता पक्ष ने ए राजा के बयानों को गलत बताया और उनके आरोपों का खंडन किया। एनडीए सांसदों ने राजा से संसद में अपने शब्दों के लिए माफी मांगने की मांग की।
इस पूरे विवाद के दौरान लोकसभा में भारी हंगामा हुआ, लेकिन अंत में पीठासीन अधिकारी ने मामले को शांत करने के लिए टिप्पणी को कार्यवाही से हटाने का आदेश दिया।