कैसे काम करता है यह प्लांट?
संस्थान के बीके योगेंद्र भाई ने बताया कि इस संयंत्र में रोजाना तीन से साढ़े तीन टन गीले कचरे को रिसाइकिल किया जाता है। यह कचरा आमतौर पर फल और सब्जियों का अपशिष्ट होता है। इस कचरे को पहले काटकर फिर मिक्स किया जाता है, और इसके बाद इसे डाइजेस्टर टैंक में डाला जाता है। इस प्रक्रिया से बायो गैस बनती है, जिसे जनरेटर के माध्यम से बिजली में बदला जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में रोजाना तीन से चार हजार लीटर तरल खाद भी तैयार होती है, जिसका उपयोग फसल और सब्जी के उत्पादन में किया जाता है।
संयंत्र के लाभ:
- कचरे से मुक्ति मिलती है
- वायु प्रदूषण कम होता है
- बिजली और जैविक खाद का उत्पादन होता है
- रोजगार के नए अवसर बनते हैं
- जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है
घास और पत्तों का उपयोग भी
इस संयंत्र में पार्क और गार्डन से निकलने वाली घास और पत्तों को भी इस्तेमाल किया जाता है। इन्हें अन्य गीले कचरे के साथ मिलाकर लिक्विड खाद तैयार किया जाता है।
यह प्लांट राजस्थान में अपनी तरह का पहला है और इसने ऊर्जा के क्षेत्र में एक नया कदम बढ़ाया है।