किनोवा की खेती की शुरुआत: मोहन लाल धाकड़ ने 2003 में औषधीय फसलों की खेती की शुरुआत की थी, लेकिन पहले साल उन्हें घाटा हुआ था। फिर उन्होंने कृषि विभाग से सलाह ली और जैविक खेती की मदद से फसल की पैदावार बढ़ाई। अब वे किनोवा, चिया और कलौंजी जैसी फसलों से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।
किनोवा की खेती के लाभ: किनोवा मुख्य रूप से दक्षिण अफ्रीका में उगाई जाती है। यह पौष्टिकता से भरपूर होती है और इसका उपयोग खाने और दवाइयों में होता है। टोंक, चित्तौड़गढ़, उदयपुर, जालोर और जोधपुर में अब इसकी खेती बढ़ रही है। राजस्थान में इसके लिए मंडी नहीं होने के बावजूद, मध्यप्रदेश की नीमच मंडी में इसकी अच्छी बिक्री होती है।
किनोवा की खेती कैसे करें:
- भूमि की तैयारी: खेत को अच्छे से जुताई करें, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। अंतिम जुताई से पहले गोबर की खाद डालें।
- बुआई: बीज बहुत छोटा होता है, इसलिए प्रति बीघा 400-600 ग्राम बीज पर्याप्त है। इसे सीधे या कतरों में बो सकते हैं।
- सिंचाई: बुआई के तुरंत बाद सिंचाई करें।
- दूरी: पौधों के बीच 10-14 इंच की दूरी रखें और अतिरिक्त पौधों को हटा दें।
किनोवा की खेती से कम पानी में भी अच्छी पैदावार होती है, और इसमें कोई रोग नहीं लगता। किसान इस फसल को बिना कीटनाशक के उगा सकते हैं।