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बैल बाजार की परंपरा हुई कमजोर, अब नहीं दिखती रौनक

बदलते समय के साथ बैल बाजार हो रहे खत्म

हमारे घरों में दूध, दही, घी, मठा और पनीर जैसे उत्पाद इस्तेमाल होते हैं, जो दुधारू पशुओं से मिलते हैं। पहले पशुपालक बैल बाजार से अपने पशु खरीदते थे, लेकिन अब यह परंपरा खत्म होने की कगार पर है। छिंदवाड़ा का बैल बाजार भी कभी रौनक से भरा रहता था, लेकिन अब नाममात्र के लिए ही बचा है।

कोरोना के बाद बैल बाजार का अस्तित्व संकट में

करीब चार साल पहले कोरोना संक्रमण के दौरान बैल बाजार पर बुरा असर पड़ा। तब से धीरे-धीरे यह खत्म होने लगा। अब न तो विक्रेता पशु लेकर आ रहे हैं और न ही खरीदार नजर आ रहे हैं। पशुपालकों ने इस बाजार को बंद बाजार मान लिया है

कभी शहर के बीच में लगता था बैल बाजार

पुराने समय में बैल बाजार शहर के बीच में होता था और इसकी काफी रौनक रहती थी। दूर-दूर से लोग अपने पशु बेचने और खरीदने आते थे। निगम राजस्व प्रभारी साजिद खान ने बताया कि 50 साल पहले तक यह बाजार बहुत सक्रिय था। पहले यह यातायात चौक के पास यातायात थाने के पीछे लगता था, फिर इसे रेलवे क्रॉसिंग के पास पीजी कॉलेज रोड में शिफ्ट कर दिया गया।

अब शहर का घनत्व बढ़ने के कारण इसे आनंदम भवन के सामने लगा दिया गया, लेकिन यहां भी गिनती के लोग ही पहुंचते हैं

निगम को होती थी अच्छी आमदनी

पहले बैल बाजार से नगर निगम को अच्छी आमदनी होती थी। बैल बाजार के ठेके की नीलामी होती थी, जिससे निगम को प्रति पशु बिक्री पर 5% राजस्व मिलता थाएक दिन में 50 हजार से 1 लाख तक की कमाई हो जाती थी

अब बैल बाजार में पशु बिक ही नहीं रहे, इसलिए व्यापारी भी ठेका लेने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। वर्तमान में यह आमदनी सिर्फ 1,500-2,000 रुपये रह गई है। कई बार एक भी रसीद नहीं कटती। पहले बैल बाजार का ठेका 20-30 लाख रुपये में होता था, लेकिन अब यह भी बंद होने की कगार पर है।

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