सिवनी जिले का पेंच टाइगर रिजर्व दुनियाभर में मशहूर है। यह नेशनल हाईवे-44 से 15 किलोमीटर अंदर खवासा में स्थित है। यहां बाघों के साथ कई अन्य जंगली जानवर भी देखे जा सकते हैं। बाघों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन इंसानों का बढ़ता दखल उनके लिए खतरा बन रहा है। बीते छह महीनों में बाघों ने कई बार ग्रामीणों पर हमला किया है।
बाघों के लिए मास्टर प्लान नहीं
पेंच टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या तो बढ़ रही है, लेकिन इन्हें जंगल तक सीमित रखने के लिए कोई ठोस योजना नहीं है। खवासा, तुरिया, करमाझिरी और जुमतरा जैसे इलाकों में जंगल की जमीन पर अवैध कब्जे बढ़ रहे हैं। पिछले 10 सालों में यहां कई रिसॉर्ट बन चुके हैं, जिससे जंगली जानवरों की जिंदगी खतरे में है।
रिसॉर्ट्स और सफारी बढ़ने से दिक्कतें
जंगल के पास रिसॉर्ट्स की संख्या लगातार बढ़ रही है। पर्यटकों के लिए सफारी की संख्या भी बढ़ा दी गई है। रिसॉर्ट्स में तेज आवाज में म्यूजिक, पार्टी और आतिशबाजी हो रही है, जिससे जानवर डिस्टर्ब हो रहे हैं। अब बाघ इंसानी बस्तियों की ओर आने लगे हैं।
बाघों की बढ़ती संख्या और खतरे
2010 में पेंच में 65 बाघ थे, 2014 में यह संख्या घटकर 43 रह गई। 2018 में फिर 65 बाघ हुए और 2022 में यह संख्या 123 हो गई। लेकिन अब इनके रहने और खाने की समस्या बढ़ रही है।
कचरे की सही व्यवस्था नहीं
रिसॉर्ट्स से निकलने वाला कचरा जंगल में ही फेंका जा रहा है, जिससे पर्यावरण और जानवरों को नुकसान हो रहा है।
ग्रामीणों में आक्रोश
हाल ही में एक 63 वर्षीय किसान को बाघ ने मार दिया, जिससे ग्रामीणों में गुस्सा है। उन्होंने वन विभाग और पुलिस की गाड़ियों पर हमला भी किया।
एनजीटी की जांच समिति
एनजीटी ने पेंच टाइगर रिजर्व में बढ़ते अतिक्रमण और शोर से वन्य जीवों पर असर की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति बनाई है, जो मार्च तक रिपोर्ट देगी।
क्या कहते हैं अधिकारी?
डिप्टी डायरेक्टर रजनीश सिंह का कहना है कि रिसॉर्ट जंगल में नहीं, गांव में हैं, लेकिन शोर और आतिशबाजी से जानवर परेशान होते हैं। सावधानी रखी जाए तो हादसे टाले जा सकते हैं।
जरूरी है मास्टर प्लान
बाघों की सुरक्षा और जंगल में उनकी सुविधा के लिए एक मजबूत मास्टर प्लान बनाना जरूरी है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो भविष्य में इसका भयानक नतीजा देखने को मिल सकता है।