कुकुरदी के ग्रामीणों का चुनाव बहिष्कार
बलौदाबाजार के कुकुरदी गांव के लोगों ने चुनाव का बहिष्कार कर दिया। उनका कहना है कि प्रशासन ने सांवरा बस्ती के लोगों को जबरदस्ती कुकुरदी पंचायत में जोड़ दिया है। पहले वे बलौदाबाजार के वार्ड नंबर-2 में वोट डालते थे, लेकिन अब उन्हें कुकुरदी में जोड़ा गया है, जिससे ग्रामीण नाराज हैं।
क्या है मामला?
- यह विवाद 2013 से चला आ रहा है।
- पहले सांवरा बस्ती के लोग बलौदाबाजार में वोट डालते थे और वहीं से सरकारी सुविधाएं मिलती थीं।
- ग्रामीणों ने कलेक्टर को कई बार ज्ञापन दिया, लेकिन कोई समाधान नहीं हुआ।
- अब ग्रामीणों ने पंचायत चुनाव का बहिष्कार करने का फैसला लिया।
कोट गांव में खदान बंद नहीं तो वोट नहीं
बलौदाबाजार के कोट गांव के लोगों ने भी चुनाव का बहिष्कार किया। उनकी मांग है कि आशू स्टोन खदान को बंद किया जाए।
- गांव वाले लंबे समय से खदान के कारण होने वाले प्रदूषण का विरोध कर रहे हैं।
- प्रशासन से कई बार शिकायत की, लेकिन सिर्फ आश्वासन मिला।
- नाराज होकर गांव के लोगों ने मतदान में भाग लेने से इनकार कर दिया।
- प्रशासन की समझाइश भी बेअसर रही, चुनाव प्रचार भी नहीं होने दिया गया।
कसडोल में उत्साह से हुआ मतदान
कसडोल में मतदान को लेकर बड़ा उत्साह देखा गया।
- दोपहर 1 बजे तक 58.20% मतदान हुआ।
- मतदान शाम 3 बजे तक जारी रहा।
- कलेक्टर दीपक सोनी के नेतृत्व में मतदान केंद्रों पर अच्छी व्यवस्था की गई।
- 293 मतदान केंद्रों में मतदान हुआ, जिसमें 903 पंचायत प्रतिनिधियों और जिला पंचायत सदस्य के लिए वोट डाले गए।
प्रेरणादायक मतदान कहानियां
- 96 वर्षीय सुहावन बाई ने व्हीलचेयर पर आकर मतदान किया।
- हरिशंकर देवांगन ने पहले वोट डाला, फिर अपनी बारात लेकर निकले।
- सगी बहनें रमा और प्रभा देवांगन हल्दी-मेहंदी लगे हाथों से मतदान करने पहुंची।
- छोटी कद-काठी की सुशीला बाई ने मतदान कर सभी नागरिकों को मतदान का संदेश दिया।
- दिव्यांग मतदाता फूलचंद साहू ने भी मतदान कर प्रशासन की अच्छी व्यवस्था की तारीफ की।
कुकुरदी में संघर्ष जारी
सांवरा बस्ती के लोगों को लेकर प्रशासन का फैसला अब भी साफ नहीं है।
- पहले वे बलौदाबाजार के इंदिरा कॉलोनी में थे, फिर 2012-13 में कुकुरदी भेज दिए गए।
- अभी तक यह तय नहीं हुआ कि वे कहां के मतदाता होंगे।
- इस समस्या का हल न होने के कारण ग्रामीण नाराज हैं और चुनाव का बहिष्कार कर रहे हैं।
निष्कर्ष
जहां कसडोल और अन्य क्षेत्रों में लोग लोकतंत्र के महापर्व में बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं, वहीं कुछ गांवों में सरकारी नीतियों और प्रशासन की अनदेखी के कारण चुनाव का बहिष्कार किया गया। प्रशासन को इन समस्याओं का जल्द हल निकालना जरूरी है ताकि आने वाले चुनावों में सभी लोग अपने मताधिकार का उपयोग कर सकें।