भक्तों की आस्था बनी हुई है
तुलार गुफा तक पहुंचने का रास्ता बेहद कठिन है। भक्तों को पहाड़ी रास्तों, जंगली जानवरों, झरनों और पथरीले रास्तों से गुजरना पड़ता है। गुडरा नाला को तीन बार पार करने के बाद ही श्रद्धालु तुलार धाम पहुंच सकते हैं। बारसूर, गीदम, दंतेवाड़ा, जगदलपुर, कांकेर, भैरमगढ़ और बीजापुर से भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं।
नक्सलियों के डर के बावजूद श्रद्धालु आते हैं
महाशिवरात्रि पर यहां जलाभिषेक करने के लिए दूर-दराज से लोग पहुंचते हैं। लेकिन नक्सलियों के डर और सड़कों की खराब हालत के कारण यात्रा कठिन हो जाती है। स्थानीय ग्रामीण हर साल रास्ते की सफाई करते हैं, ताकि श्रद्धालु बाइक या साइकिल से मंदिर तक पहुंच सकें। हाल ही में इस क्षेत्र में पुलिस और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई थी, जिससे डर का माहौल बना हुआ है, फिर भी श्रद्धालु अपनी आस्था पर अडिग हैं।
मनोकामनाएं होती हैं पूरी
स्थानीय पत्रकार जोगेश्वर नाग बताते हैं कि तुलार गुफा साल में सिर्फ एक बार ही खुलती है। वे बचपन से यहां आते रहे हैं और कहते हैं कि लोग अपनी मनोकामनाएं पूरी होने के विश्वास के साथ यहां पूजा-अर्चना करने आते हैं। कई भक्त यहां बीमारियों और परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए प्रार्थना करते हैं।
कैसे पहुंचे तुलार गुफा?
तुलार गुफा गीदम के बारसूर से लगभग 30 किमी दूर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए दुर्गम पहाड़ी और जंगलों से होकर गुजरना पड़ता है।
इस यात्रा के लिए बारसूर के पास स्थित कौशलनार, मुचनार, बाघधार, टेमरुभाटा घाट से इंद्रावती नदी पार करनी होती है। इसके बाद कोसलनार, मंगनार और गुफा गांव होते हुए तोड़मा गांव तक पहुंचा जा सकता है।
निष्कर्ष
तुलार गुफा में महादेव के दर्शन के लिए भक्त कठिन रास्तों और नक्सलियों के खतरे को भी नजरअंदाज कर पहुंचते हैं। भले ही सड़कें खराब हैं, फिर भी श्रद्धालु अपनी आस्था और भक्ति के कारण हर साल महाशिवरात्रि पर यहां उमड़ते हैं।