कैसे मिला शिवलिंग?
करीब 300 साल पहले, जब गांव में पीने के पानी की समस्या थी, तो मालगुजार ने कुआं खुदवाने का फैसला किया। खुदाई के दौरान लाल-भूरे रंग का गोल पत्थर मिला, जिसे निकालने की बहुत कोशिश की गई, लेकिन वह हिला तक नहीं। जब लोगों को लगा कि यह कोई देव प्रतिमा है, तो खुदाई बंद कर दी गई और दूसरी जगह कुआं खोद लिया गया।
शिवलिंग का आकार बढ़ा
स्थानीय लोगों के अनुसार, जब यह शिवलिंग मिला था, तब यह नारियल के आकार का था, लेकिन समय के साथ यह बड़ा होता गया। अब इसका आकार स्थिर हो गया है, लेकिन इसकी धारियां गहरी हो गई हैं। कुछ वर्षों पहले शिवलिंग पर “ऊँ” की आकृति भी उभर आई, जो पहले नहीं दिखती थी।
भक्तों की आस्था और मंदिर निर्माण
- इस शिवलिंग की खोज के बाद से यहां जल चढ़ाने और पूजा करने की परंपरा शुरू हो गई।
- श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ने लगी और महाशिवरात्रि पर मेला लगने लगा।
- स्थानीय मालगुजार ने यहां एक छोटा मंदिर बनवाया, जो अब भक्तों के लिए आस्था का बड़ा केंद्र बन चुका है।
पंडित प्रदीप मिश्रा ने दिया नया नाम
प्रसिद्ध कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने यहां शिव महापुराण कथा सुनाई थी। उन्होंने इस शिवलिंग को “सहस्त्रत्ते्श्वर महादेव” की संज्ञा दी और इसकी आकृति को असाधारण और दिव्य बताया।
महाशिवरात्रि और श्रद्धालुओं की भीड़
हर महाशिवरात्रि पर विशाल मेला लगता है और प्रत्येक सोमवार को बड़ी संख्या में भक्त पूजा के लिए आते हैं। यह स्थान अब शिवभक्तों की आस्था का केंद्र बन चुका है।