हाइपरलूप ट्रैक का निर्माण
- आईआईटी मद्रास के डिस्कवरी परिसर में 422 मीटर लंबा हाइपरलूप ट्रैक बनाया गया है।
- यह तकनीक रेल यात्रा को घंटों से मिनटों में बदल सकती है।
- रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस प्रोजेक्ट के लिए 1 मिलियन डॉलर के तीसरे अनुदान की घोषणा की है।
- शुरुआती परीक्षण में हाइपरलूप पॉड को 100 किमी प्रति घंटा की स्पीड से दौड़ाया गया।
हाइपरलूप कैसे काम करेगा?
- हाइपरलूप एक वैक्यूम ट्यूब (निर्वात नली) में विशेष कैप्सूल की मदद से चलता है।
- इस ट्यूब में हवा नहीं होती, जिससे ट्रैक पर घर्षण बहुत कम हो जाता है और 800 किमी प्रति घंटा तक की स्पीड संभव होती है।
- 2020 में अमेरिका के लास वेगास में वर्जिन हाइपरलूप का परीक्षण हुआ था, जिसमें 161 किमी प्रति घंटा की स्पीड दर्ज की गई थी।
दो साल में हो सकता है व्यावसायिक उपयोग
- हाइपरलूप प्रोजेक्ट को पूरा होने में करीब दो साल लगे।
- 100 से अधिक लोग इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं।
- अगर सब कुछ सही रहा, तो डेढ़ से दो साल के भीतर हाइपरलूप का व्यावसायिक उपयोग शुरू हो जाएगा।
कहां से होगी शुरुआत?
- शुरुआत में कार्गो (माल ढुलाई) के लिए इसका उपयोग किया जाएगा।
- यह ट्रैक बंदरगाहों, शहरों या राज्यों को जोड़ सकता है।
- पहले इसे 50-60 किमी के रेल मार्ग पर लागू किया जाएगा।
भविष्य में यातायात होगा और तेज
अगर यह प्रोजेक्ट सफल होता है, तो लंबी दूरी की यात्रा बेहद तेज और आसान हो जाएगी। हाइपरलूप तकनीक से न केवल समय की बचत होगी, बल्कि यह एक क्रांतिकारी परिवहन प्रणाली भी साबित होगी।