कैसा है यह अनोखा आश्रम?
यह आश्रम रामस्नेही संप्रदाय के संत गुलाबदास महाराज के शिष्य मूर्तिराम महाराज की प्रेरणा से स्थापित किया गया था। यहां रहने वाले संत पैसे और भौतिक सुख-सुविधाओं से दूर रहते हैं।
- संतों के पास एक से ज्यादा कपड़े नहीं होते।
- कोई भी वाहन इस्तेमाल नहीं किया जाता।
- आश्रम में नकद दान स्वीकार नहीं किया जाता, केवल अनाज, सब्जी, आटा, मसाले आदि भेंट किए जाते हैं।
- भक्तों को राम नाम जपने का संकल्प दिलाया जाता है।
हर काम में राम नाम
आश्रम में हर चीज राम नाम से जुड़ी होती है:
- जल को “जलराम”, रोटी को “रोटीराम”, दही को “छाछराम” और नमक को “रामरस” कहा जाता है।
- संतों का अभिवादन भी “रामजीराम” से किया जाता है।
त्याग और भक्ति का केंद्र
आश्रम के मुख्य संत हेतमराम महाराज का कहना है कि यहां सिर्फ राम नाम का महत्व है, भौतिक चीजों का कोई मोह नहीं। संत नेमीराम महाराज के अनुसार, जब तक पुराने कपड़े फट न जाएं, तब तक नया वस्त्र नहीं लिया जाता।
यह अनोखा आश्रम त्याग, भक्ति और राम नाम की साधना का केंद्र बना हुआ है।