लोकगीतों से मंत्रमुग्ध हुए श्रोता
- राकेश उपाध्याय ने अपनी पहली प्रस्तुति महाशिवरात्रि पर भोलेनाथ को समर्पित गीत से की –
“बसहा चढ़ल शिव जी अइले बरियतिया, डरवा लागेला, मुहवा में एकहु नइखे दांत।” - इसके बाद उन्होंने परदेशी प्रेम पर आधारित गीत गाया –
“कुइयां के ठंढा पानी, पीपल की छांव रे, अइहो परदेसिया सबेरे मोरा गांव रे।” - श्रोताओं की मांग पर उन्होंने एक शानदार होली गीत भी पेश किया –
“फुल गेना के आईल बहार हे रसिया, गेना लगईल बगिया में।”
इस पर दर्शक झूम उठे और माहौल रंगीन हो गया।
भारत का नाम कर चुके हैं रोशन
- राकेश उपाध्याय भारत ही नहीं, बल्कि दक्षिण अफ्रीका, बैंकाक, मस्कट (ओमान), नीदरलैंड और सिंगापुर जैसे देशों में भी अपने लोकगीतों से भारतीय संस्कृति का प्रचार कर चुके हैं।
सम्मान और उपलब्धियां
- 2016 में उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित।
- उत्तर प्रदेश संत कबीर अकादमी के सदस्य।
- संस्कार भारती, गोरखपुर महानगर के मंचीय कला संयोजक।
उनकी यह प्रस्तुति ताज महोत्सव 2025 की खास यादों में से एक रही।