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91 लाख खर्च फिर भी बंद पड़ा घंटाघर, स्मार्ट सिटी योजना पर उठे सवाल

बरेली: शहर के ऐतिहासिक घंटाघर को दोबारा चालू करने के लिए स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत 91 लाख रुपये खर्च किए गए, लेकिन कुछ ही महीनों में घड़ी की सुइयां फिर से अटक गईं और घंटे की आवाज भी बंद हो गई। अब शहरवासी इस योजना पर सवाल उठा रहे हैं कि इतनी बड़ी रकम खर्च होने के बावजूद घंटाघर दोबारा खराब कैसे हो गया?

घंटाघर का इतिहास

  • जहां आज घंटाघर है, वहां पहले कुतुबखाना पुस्तकालय था।
  • 1965 में आकाशीय बिजली गिरने से पुस्तकालय नष्ट हो गया।
  • 1975 में उसी जगह घंटाघर का निर्माण कराया गया।
  • 1977 में इसमें घंटा लगाया गया, लेकिन रखरखाव की कमी से यह खराब हो गया।

मरम्मत की कहानी

  • 2020 में स्मार्ट सिटी योजना के तहत घंटाघर के सुधार की योजना बनी।
  • 2022 में चेन्नई की इंडियन क्लॉक्स कंपनी को 9 फुट की नई घड़ी बनाने का ठेका दिया गया।
  • दावा किया गया कि इसकी आवाज एक किलोमीटर तक सुनाई देगी।
  • 2022 में घंटाघर दोबारा चालू हुआ, लेकिन अब फिर बंद पड़ा है।

बरेली के घंटाघरों की हालत

कभी बरेली में तीन बड़े घंटाघर (कुतुबखाना, साहू गोपीनाथ चौक, और बरेली कॉलेज) थे, लेकिन अब उनकी हालत खराब हो चुकी है—
✔️ साहू गोपीनाथ चौक का घंटाघर खंडहर में बदल चुका है।
✔️ बरेली कॉलेज का घंटाघर भी बंद पड़ा है।
✔️ कुतुबखाना घंटाघर का जीर्णोद्धार हुआ था, लेकिन अब वह भी खामोश है।

स्मार्ट सिटी योजना पर सवाल

जब 91 लाख रुपये खर्च किए गए थे, तो घंटाघर कुछ ही महीनों में फिर क्यों बंद हो गया? स्मार्ट सिटी योजना के तहत दावा किया गया था कि घंटाघर हमेशा चालू रहेगा, लेकिन अब यह बंद पड़ा है।

प्रशासन का बयान

अपर नगर आयुक्त सुनील कुमार यादव ने कहा कि घंटाघर को सही करने के लिए संबंधित अधिकारियों को आदेश दे दिए गए हैं और जल्द ही मरम्मत का काम शुरू होगा।

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