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फाल्गुन के आते ही सुनाई देने लगी चंग की थाप

भीलवाड़ा। फाल्गुन महीने की शुरुआत के साथ ही चारों ओर चंग की थाप और फाल्गुनी गीतों की गूंज सुनाई देने लगती है। होली का त्योहार नजदीक आते ही गांवों और शहरों में उल्लास और उमंग का माहौल बन जाता है।

होली पर चंग बजाने की परंपरा

होली के समय चंग बजाने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। इस दौरान लोग घर-घर और प्रतिष्ठानों पर जाकर चंग बजाते हैं और फाल्गुनी गीत गाते हैं। इस परंपरा के तहत लोग अपनी श्रद्धा के अनुसार बधाई भी देते हैं। हालांकि, समय के साथ पहले जैसी रौनक अब कम होती जा रही है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में चंग की धुन पर नाचने-गाने की परंपरा आज भी जिंदा है

मंदिरों में फागोत्सव की शुरुआत

बसंत ऋतु के आगमन के साथ ही मंदिरों में फागोत्सव शुरू हो जाता है। होली से आठ दिन पहले होलाष्टक लग जाते हैं, जिसके बाद शुभ और मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है।

‘ढूंढ़’ प्रथा का निर्वाह

ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी ‘ढूंढ़’ प्रथा का विशेष महत्व है। होली से पहले रामा-श्यामा के दिन युवाओं की टोलियां नवजात शिशु को आशीर्वाद देने के लिए घर-घर जाती हैं। यह परंपरा शुभ मानी जाती है और इसे वर्षों से निभाया जा रहा है।

फाल्गुन का महीना खुशियों, मेल-मिलाप और उत्सव का समय होता है, जिसमें चंग की धुन और फाल्गुनी गीतों से वातावरण आनंदमय हो जाता है।

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