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कुलबेहरा नदी: 80 किमी का सफर, 25 हजार किसानों के लिए जीवनदायिनी

छिंदवाड़ा। कुलबेहरा नदी भले ही बड़ी नदियों जैसी न हो, लेकिन यह छिंदवाड़ा शहर और आसपास के गांवों के लिए जीवनरेखा है। यह नदी हजारों हेक्टेयर खेतों की सिंचाई में मदद करती है और छिंदवाड़ा की आधी आबादी की जलापूर्ति इसी से होती है।

नगर निगम की जलापूर्ति में अहम भूमिका

छिंदवाड़ा में 42 हजार से ज्यादा नल कनेक्शन हैं, जिनमें कुलबेहरा नदी का योगदान सबसे ज्यादा है। माचागोरा डैम बनने से पहले, कंहरगांव डैम से शहर की टंकियां भरी जाती थीं। आज भी कुलबेहरा नदी से भरतादेव के दो जल संयंत्रों (11 एमएलडी और 15.75 एमएलडी) को पानी मिलता है। 2021 में नदी के पानी को रोकने के लिए नगर निगम ने 1.75 करोड़ की लागत से एनीकट बनाया, जिससे जल आपूर्ति 3 महीने तक बढ़ गई

कुलबेहरा नदी का सफर

कुलबेहरा नदी का उद्गम उमरेठ तहसील के पास है। यह नदी 80 किमी लंबी है और इसकी चौड़ाई 20 से 120 मीटर तक है। यह कुंडाली, गांगीवाड़ा, कंहरगांव, रोहना, बांडाबोह, सर्रा, इमलीखेड़ा, लिंगा कालीरात, चांद होते हुए पेंच नदी में मिल जाती है। जिले के रामदोह, बोदरी, चौहारी जैसे नाले इस नदी के जलस्तर को बढ़ाते हैं। नदी से 25 हजार किसान अपने खेतों की सिंचाई करते हैं।

नदी के प्रति आस्था और संस्कृति

कुलबेहरा नदी वर्षों से आस्था और परंपराओं का केंद्र रही है। 80 वर्षीय शारदा बाई माहोरे बताती हैं कि जब शहर नहीं बसा था, तब यह नदी गंगा-यमुना के समान पवित्र मानी जाती थीलिंगा कालीरात में नदी किनारे अंतिम संस्कार का विशेष महत्व था। यहां आज भी दीपावली के बाद नदी किनारे मेला लगता है। 75 वर्षीय शांताराम बताते हैं कि नदी किनारे के कुएं कभी सूखते नहीं थे, लेकिन अब अवैध रेत खनन और अतिक्रमण के कारण नदी उथली हो रही है।

नदी को संरक्षित करने की जरूरत

सामाजिक कार्यकर्ता बबला पटेल का कहना है कि सरकार को इस नदी का संरक्षण करना चाहिए। अवैध रेत खनन और अतिक्रमण से नदी का स्वरूप बिगड़ रहा है। यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो भविष्य में यह नदी अपनी पहचान खो सकती है।

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