नक्सल पीड़ित महिलाएं भी जुड़ीं
कैंप में वे महिलाएं भी रह रही हैं, जिनके पति नक्सलियों द्वारा मारे गए या जिन्हें गांव से बेदखल कर दिया गया। यह गुलाल न केवल इनकी आजीविका का साधन बना, बल्कि इनके जीवन में भी नए रंग भर रहा है। प्रशासन ने इन महिलाओं के लिए जिले में गुलाल के स्टॉल लगाने की पहल की है।
कैसे बनता है हर्बल गुलाल?
‘मां दुर्गा स्वयं सहायता समूह’ की महिलाएं पारंपरिक ज्ञान और विधियों से हर्बल गुलाल बना रही हैं। समूह की अध्यक्ष फगनी कोवासी का कहना है कि गांव छोड़ने के बाद जीवन अंधकारमय लग रहा था, लेकिन यह समूह अब हमारी ताकत बन गया है।
समूह की सचिव अनिता कर्मा बताती हैं कि जब रंग बनाने का विचार आया, तो सोचा क्यों न प्राकृतिक रंग बनाए जाएं। ये सेहत और पर्यावरण दोनों के लिए सुरक्षित हैं और हमारी आय का जरिया भी बन गए हैं।
प्रशासन का समर्थन और बाजार की तैयारी
मुख्य कार्यपालन अधिकारी पुनीत राम साहू ने बताया कि यह पहल महिला सशक्तिकरण और स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने का एक प्रयास है।
- प्रशासन ने इनके गुलाल को बाजार तक पहुंचाने की योजना बनाई है।
- बीजापुर जिले के सरकारी कार्यालयों में इन गुलाल के स्टॉल लगाए जाएंगे।
- बस्तर संभाग में भी इन उत्पादों को बेचा जाएगा।
इस हर्बल गुलाल की खासियत
✅ केमिकल-फ्री और त्वचा के लिए सुरक्षित
✅ स्थानीय फूलों और पौधों से तैयार
✅ सस्ती कीमत, आम लोगों की पहुंच में
इस पहल से पूर्व महिला नक्सलियों और पीड़ित महिलाओं का जीवन बदल रहा है, और अब वे अपने हाथों से खुशियां बिखेर रही हैं।