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चंबल नदी के किनारे कछुओं का नया घर, नेस्टिंग शुरू

मध्य प्रदेश: चंबल नदी के किनारे बरही से अटेर तक कछुओं की नेस्टिंग शुरू हो गई है। इस इलाके में बटागुर साल, ढोर, सुंदरी, मोरपंखी, कटहवा, भूतकाथा, स्योत्तर और पचेड़ा जैसी कछुआ प्रजातियों को संरक्षित किया जा रहा है।

350 से ज्यादा अंडे सुरक्षित

🐢 पिछले 15 दिनों में 350 से अधिक अंडे कनकपुरा की अस्थायी हैचरी में सुरक्षित रखे गए हैं।
🐢 गर्मी बढ़ने पर मई-जून में इन अंडों से कछुए निकलेंगे।
🐢 सबसे ज्यादा अंडे ज्ञानपुरा, सांकरी और कनकपुरा घाटों से मिले हैं।

पिछले साल के आंकड़े

📌 2024 में कुल 1,145 अंडे सुरक्षित किए गए थे, जिनमें से 1,020 कछुए जीवित निकले।
📌 145 नवजात कछुओं को बरही के अनुसंधान केंद्र में विशेष देखरेख में रखा गया।
📌 इस साल 200 से अधिक कछुओं को संरक्षण देने की योजना है।

खतरे में दुर्लभ प्रजातियां

⚠️ बटागुर और बटागुर डोंगोका जैसी प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर हैं।
⚠️ बरही में एक विशेष केंद्र बनाया गया है, जहां नवजात कछुओं को सुरक्षित रखा जाता है।

कैसे किया जा रहा संरक्षण?

अंडों को रेत में डेढ़ फीट गहराई तक दबाया जा रहा है, ताकि गर्मी बढ़ने पर बच्चे आसानी से बाहर आ सकें।
कर्मचारी सुबह से घाटों पर जाकर अंडे इकट्ठा कर रहे हैं।
नेस्टिंग प्रक्रिया 25 फरवरी से शुरू हुई है और अप्रैल के अंत तक चलेगी।

चंबल की पहचान – ‘साल’ प्रजाति

🔹 ‘साल’ प्रजाति के कछुए सिर्फ चंबल नदी में पाए जाते हैं।
🔹 ढोर प्रजाति भी यहां बड़ी संख्या में मिलती है।
🔹 अंडों को सुरक्षित रखने के लिए चंबल किनारे कई अस्थायी हैचरी बनाई गई हैं।

सुरक्षा के लिए कड़ी निगरानी

🔒 अंडों को जानवरों से बचाने के लिए कर्मचारियों की विशेष ड्यूटी लगाई गई है।
🔒 अंडों को कनकपुरा में इकट्ठा कर अस्थायी हैचरी में सुरक्षित रखा गया है।

संरक्षण के आंकड़े

📊 2024 में सुरक्षित अंडे – 1,145
📊 2025 में अब तक मिले अंडे – 350
📊 पिछले साल जीवित निकले कछुए – 1,020
📊 बरही केंद्र में संरक्षित कछुए – 145
📊 2025 में 200 से अधिक कछुए संरक्षण में रहेंगे

चंबल नदी के किनारे यह संरक्षण अभियान कछुओं की नई पीढ़ी को सुरक्षित रखने के लिए महत्वपूर्ण कदम है। 🐢🌿

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