
बेसहारा पशुओं की समस्या को एक बड़े अभियान की तरह देखने की जरूरत है। इसे हल करने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति जरूरी है।
सड़कों पर बढ़ रहा खतरा
- कुत्तों ने कॉलेज छात्रा पर हमला किया, जिससे उसके शरीर पर 12 जगह चोटें आईं।
- सांडों की लड़ाई में एक राहगीर बुरी तरह घायल हुआ।
- बेसहारा पशु सड़कों पर घूम रहे हैं, जिससे लोगों का निकलना मुश्किल हो रहा है।
- यह समस्या किसी एक शहर की नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश की है।
बीकानेर और अलवर में स्थिति चिंताजनक
- बीकानेर में सांडों (गोधों) का आतंक ज्यादा देखने को मिलता है।
- रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, बाजार और कॉलोनियों में सांडों के झुंड नजर आते हैं।
- लोग सड़कों पर चलते समय अचानक इन पशुओं की भगदड़ का शिकार हो जाते हैं।
समाधान क्यों नहीं हो रहा?
- बीकानेर नगर निगम की एक नंदीशाला है, जहां ढाई से तीन हजार पशु रखे जा सकते हैं।
- लेकिन वास्तव में वहां क्षमता से बहुत कम पशु रखे जाते हैं।
- निगम सांडों को पकड़ने में रुचि नहीं दिखाता, जबकि बजट और अनुदान की कोई कमी नहीं है।
- निजी गोशालाएं गायों को लेती हैं, लेकिन सांडों को नहीं अपनातीं।
नेताओं और प्रशासन की उदासीनता
- क्षेत्र के जनप्रतिनिधि तभी सक्रिय होते हैं जब कोई बड़ा हादसा हो जाता है।
- उनकी सहानुभूति केवल कुछ समय के लिए रहती है, फिर वे इसे भूल जाते हैं।
- यही वजह है कि समस्या बढ़ती जा रही है और लोगों की जान पर खतरा बना हुआ है।
जरूरत है मजबूत इच्छाशक्ति की
- बेसहारा पशुओं की समस्या को हल करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
- इसे एक अभियान के रूप में चलाने की जरूरत है।
- अगर प्रशासन और जनप्रतिनिधि चाहें, तो अधिक बाड़े बनाकर इन पशुओं को सुरक्षित रखा जा सकता है।
- बस जरूरत है मजबूत इच्छाशक्ति की, ताकि सड़कों पर जनजीवन सुरक्षित रह सके।