पदमसिंह का छाछरो से रिश्ता
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में जब भारतीय सेना ने छाछरो (पाकिस्तान) पर कब्जा किया, तब पदमसिंह और उनके भाई लक्ष्मणसिंह सोढ़ा ने भारत का समर्थन किया। उन्होंने अपनी हवेली पर भारतीय तिरंगा फहरा दिया। इससे नाराज होकर पाकिस्तान सरकार ने उन पर जासूसी का आरोप लगाया और दो लाख का इनाम घोषित कर दिया।
शिमला समझौते के बाद जब भारत ने छाछरो वापस कर दिया, तो पदमसिंह और उनका परिवार भारत आ गया। वे चौहटन के बावड़ीकला में बस गए, लेकिन छाछरो से उनका गहरा लगाव बना रहा। अब राजस्थान सरकार ने नए गांव का नाम “छाछरो” रख दिया, जिससे उनका सपना पूरा हो गया।
नए छाछरो की पहचान
✅ नया गांव 100 हेक्टेयर में बसा है।
✅ 362 लोग यहां रहते हैं।
✅ यह पुराने गांव से सिर्फ 1 किमी दूर है।
1971 युद्ध और छाछरो की कहानी
1971 में, ब्रिगेडियर भवानी सिंह के नेतृत्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के अंदर 100 किमी तक बढ़ते हुए छाछरो पर कब्जा कर लिया था। यह पाकिस्तान का एक बड़ा कस्बा था। करीब 8 महीने तक यह भारत के नियंत्रण में रहा। उस समय बाड़मेर के कलक्टर और एसपी के अधीन छाछरो थाना भी था। लेकिन शिमला समझौते के बाद भारत को इसे वापस करना पड़ा।
पदमसिंह की खुशी
“हमने 1971 में भारत का साथ दिया था। पाकिस्तान के छाछरो में हमारी हवेली और जागीर थी। जब हम भारत आए तो हमें पूरा सम्मान मिला। अब जब नए गांव का नाम छाछरो रखा गया है, तो हमें अपनी असली पहचान वापस मिल गई है। यह हमारे लिए गर्व का क्षण है।”
— पदमसिंह सोढ़ा, छाछरो (राजस्व गांव)