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राजकमल किताब उत्सव में रंगमंच पर चर्चा

राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा जवाहर कला केंद्र में आयोजित किताब उत्सव के चौथे दिन विभिन्न विषयों पर चर्चा आयोजित की गई। पहले सत्र में ‘राजस्थान का रंगमंच’ पर परिचर्चा हुई, जिसमें अर्चना श्रीवास्तव, राघवेंद्र रावत, साबिर खान और हृषीकेश सुलभ ने भाग लिया।

राजस्थान के रंगमंच की परंपरा
साबिर खान ने कहा कि परंपरागत नाटक सरकारी सहायता के बिना भी पनपते हैं, लेकिन टेक्नोलॉजी के आने से नुकसान बढ़ा है। उन्होंने बताया कि जयपुर में पहले नाटकों में महिलाएं भी भाग लेती थीं, जो अन्य स्थानों पर नहीं होता था।

स्थानीय रंगमंच का महत्व
हृषीकेश सुलभ ने कहा कि रंगमंच को स्थानीय बनाना जरूरी है, ताकि यह दीर्घकालिक और जीवंत बना रहे। अर्चना श्रीवास्तव ने सुझाव दिया कि यदि नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के समान रीजनल स्कूल ऑफ ड्रामा बनाए जाएं, तो आंचलिक रंगमंच का विकास संभव है।

लोक भाषाओं में नाटक
राघवेंद्र रावत ने लोक भाषाओं के नाटकों के महत्व पर जोर दिया और कहा कि नाटक में दर्शकों की भूमिका महत्वपूर्ण है।

भक्तिकाव्य और राजस्थान
दूसरे सत्र में ‘भक्तिकाव्य और राजस्थान’ पर चर्चा हुई। रेखा पाण्डेय ने मीराबाई को एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में बताया, जबकि पल्लव ने मध्यकालीन समाज की गतिशीलता पर चर्चा की।

साहित्य की दुनिया
तीसरे सत्र में ‘साहित्य की दुनिया और हम’ विषय पर चर्चा हुई, जिसमें अनुवाद की महत्ता पर बल दिया गया। उषा दशोरा ने कहा कि साहित्य हमारी समझ को आसान बनाता है, जबकि विनोद भारद्वाज ने कला और साहित्य की गंभीर चर्चाओं की कमी पर चिंता जताई।

अज्ञेय के कृतित्व पर चर्चा
अंतिम सत्र में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ की कृतियों पर चर्चा की गई और उनकी किताबों का लोकार्पण किया गया। अर्चना श्रीवास्तव ने अज्ञेय की कुछ कविताओं का पाठ भी किया।

इस उत्सव ने रंगमंच, साहित्य और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श करने का एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान किया।

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