2014 के बाद से इन अस्पतालों में स्थायी फैकल्टी की भर्ती नहीं हुई है। राज्य सरकार ने एसएमएस अस्पताल के डॉक्टरों के सहारे इन अस्पतालों को चलाने का प्रयास किया है। वहीं, मानसरोवर का मानस आरोग्य सदन और सीकर रोड का ट्रॉमा सेंटर निजी हाथों में दे दिया गया क्योंकि सरकार के पास इन्हें चलाने के लिए पर्याप्त स्टाफ नहीं था।
एसएमएस अस्पताल पर दबाव
राजधानी के अलग-अलग इलाकों में स्थापित सरकारी अस्पतालों में सुपर स्पेशियलिटी सेवाओं की कमी के कारण एसएमएस अस्पताल पर अभी भी भारी संख्या में मरीजों का दबाव है, जो प्रतिदिन करीब 40 हजार तक पहुंचता है।
बड़े सेंटर की उम्मीद में मरीज
आरयूएचएस और जयपुरिया अस्पताल को जयपुर का दूसरा बड़ा अस्पताल माना जाता है, लेकिन यहां हृदय संबंधी सेवाएं नहीं होने से मरीजों को फिर से एसएमएस अस्पताल भेजा जाता है। हाल ही में, आरयूएचएस को राजस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (रिम्स) में बदलने की घोषणा की गई है, लेकिन इसके लिए स्थायी फैकल्टी की आवश्यकता है। फिलहाल यहां रिटायर्ड डॉक्टरों के सहारे अस्पताल चलाया जा रहा है।
डॉ. अजीत सिंह, अधीक्षक, आरयूएचएस