छठ पर्व का चार दिन का महत्व
यह पर्व कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। पहले दिन को ‘नहाय-खाय’ कहा जाता है। इस दिन व्रती नदी में स्नान करते हैं और भात, कद्दू की सब्जी और सरसों का साग खाते हैं। दूसरे दिन ‘खरना’ मनाया जाता है, जिसमें शाम को गुड़ की खीर का भोग लगाया जाता है। तीसरे दिन सूर्यास्त के समय व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं, और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पर्व का समापन करते हैं।
छठ पूजा की महिमा
यह पर्व बेहद कठिन माना जाता है, क्योंकि व्रत के दौरान सख्त नियमों का पालन करना होता है। इस व्रत का उद्देश्य परिवार की खुशहाली, संतान की लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन की कामना करना है। सूर्य उपासना से जीवन में ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार होता है।
छठ पूजा का प्रसाद
छठ पूजा में प्रसाद के रूप में ठेकुआ, मालपुआ, चावल के लड्डू, फल और नारियल का उपयोग होता है। ये प्रसाद शुद्ध सामग्री से बनाए जाते हैं और सूर्य देव को अर्पित किए जाते हैं।
पूजा का कार्यक्रम
- 5 नवंबर (नहाय-खाय): पहले दिन श्रद्धालु नदी में स्नान कर शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं।
- 6 नवंबर (खरना): दूसरे दिन व्रती निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को खीर, रोटी और फल का प्रसाद ग्रहण करते हैं।
- 7 नवंबर (संध्या अर्घ्य): तीसरे दिन सूर्यास्त के समय व्रती नदी या तालाब के किनारे जाकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं।
- 8 नवंबर (प्रातःकालीन अर्घ्य): चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन होता है, और प्रसाद का वितरण किया जाता है।