खो-खो का ऐतिहासिक महत्व
- खो-खो का उल्लेख महाभारत काल और मौर्य शासनकाल (चौथी शताब्दी ईसा पूर्व) में मिलता है।
- इसका आधुनिक स्वरूप महाराष्ट्र में विकसित हुआ।
- वर्ष 1914 में बाल गंगाधर तिलक ने इस खेल के लिए पहली रूल बुक तैयार की।
- 1936 बर्लिन ओलंपिक में यह खेल डेमो के रूप में दिखाया गया था।
- वर्ष 1996 में पहली बार खो-खो की एशियाई चैंपियनशिप आयोजित हुई और 2010 में इसे इंडोर मैट पर खेला जाने लगा।
खो-खो वर्ल्ड कप 2025 की विशेषताएं
- यह वर्ल्ड कप भारत में इंदिरा गांधी स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स, नई दिल्ली में आयोजित होगा।
- वर्ल्ड कप में छह महाद्वीपों के 24 देश भाग लेंगे।
- कुल 16 पुरुष और 16 महिला टीमें हिस्सा लेंगी।
- हर टीम में 18 सदस्य होंगे, जिनमें 15 खिलाड़ी, 1 कोच, 1 मैनेजर, और 1 सपोर्ट स्टाफ शामिल होंगे।
- वर्ल्ड कप के लिए 8 जनवरी से प्रैक्टिस शुरू होगी और प्रैक्टिस के लिए 1200 मैट्स लगाई जाएंगी।
भाग लेने वाले देश
अफ्रीका से: घाना, केन्या, दक्षिण अफ्रीका, युगांडा
एशिया से: भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, मलेशिया, इंडोनेशिया, भूटान, ईरान, दक्षिण कोरिया
यूरोप से: इंग्लैंड, जर्मनी, नीदरलैंड, पोलैंड
उत्तर अमेरिका से: अमेरिका, कनाडा
दक्षिण अमेरिका से: पेरू, ब्राजील
ओशिनिया से: ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड
खो-खो का भविष्य
- वर्ल्ड कप के आयोजन से खो-खो की लोकप्रियता 90 देशों तक पहुंचने की उम्मीद है।
- 2032 के ओलंपिक में इस खेल को शामिल करने का लक्ष्य है।
- यह आयोजन भारत के स्वदेशी खेलों को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
खो-खो के पहले वर्ल्ड कप से भारतीय संस्कृति और खेल इतिहास को नई ऊंचाइयां मिलेंगी।