क्या कहते हैं मजदूर?
घंटा घर के पास खड़े प्रीतम सेन और भरोसे चढ़ार बताते हैं कि वे हर दिन सुबह सात बजे यहां आते हैं और पूरे दिन खड़े रहते हैं। जिनको काम मिल जाता है, वे चले जाते हैं, और जो नहीं पाते, वे निराश होकर घर लौट जाते हैं। ये मजदूर अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए हर दिन मेहनत करते हैं, लेकिन उन्हें किसी तरह की सुविधा नहीं मिलती।
मजदूरों की समस्याएं और समाधान की मांग
पहले मजदूरों का स्थान जवाहर चौक पर था, जहां से यातायात प्रभावित होता था। फिर सिटी कोतवाली पुलिस ने घंटा घर के पास मजदूरों को एकत्र करने की व्यवस्था की थी और मजदूरों के लिए टीन शेड बनाने की घोषणाएं की थीं, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। अब मजदूरों को धूप और बारिश से बचने के लिए डिवाइडर के पेड़ों और पार्क का सहारा लेना पड़ता है।
मजदूरों की आवाज
मजदूरों का कहना है कि उन्हें बारिश और धूप से बचने के लिए कोई सुरक्षित स्थान नहीं है। बालकिशन विश्वकर्मा और रमेश प्रजापति जैसे समाजसेवी भी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि मजदूरों के लिए एक बैठने की व्यवस्था की जानी चाहिए। श्यामलाल अहिरवार और महेश प्रसाद असाटी का भी यही कहना है कि घंटा घर के पास खाली पड़ी ज़मीन पर एक टीन शेड और चबूतरा बनवाना चाहिए, ताकि मजदूर आराम से बैठ सकें और काम की तलाश में आसानी से इंतजार कर सकें।