जिले में सिकलसेल रोग का बढ़ता असर
स्वास्थ्य विभाग द्वारा 2023 से चलाए गए अभियान में अब तक 2 लाख 38 हजार लोगों की जांच की गई है। इनमें 3541 संभावित रोगी और 1200 सिकलसेल पॉजिटिव मामले मिले हैं। वर्तमान में 1048 रोगियों का हाइड्रोक्सी यूनिया प्रक्रिया के तहत उपचार किया जा रहा है।
क्या है सिकलसेल रोग?
सिकलसेल रोग एक वंशानुगत रक्त विकार है, जिसमें लाल रक्त कोशिकाएं सामान्य आकार के बजाय अर्धचंद्राकार (C-आकार) की हो जाती हैं।
- ये कोशिकाएं छोटी रक्त वाहिकाओं में फंस जाती हैं, जिससे रक्त प्रवाह रुक सकता है।
- शरीर के अंगों तक ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित होती है, जिससे एनीमिया और अन्य गंभीर समस्याएं होती हैं।
सिकलसेल रोग के लक्षण
- अचानक और तीव्र दर्द।
- हड्डियों में दर्द।
- आंखों की समस्याएं।
- पैरों में सूजन और दर्द।
- संक्रमण का खतरा।
- लकवे (पैरालिसिस) की संभावना।
रोग के कारण
- माता-पिता से एचबीबी जीन का विरासत में मिलना।
- माता-पिता दोनों पॉजिटिव हों तो बच्चे को यह बीमारी होने की 60% संभावना।
- यह रोग विशेष रूप से आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है।
जिले में अधिक प्रभावित क्षेत्र
- बैहर, बिरसा, परसवाड़ा, लामता, और लांजी जैसे आदिवासी क्षेत्रों में रोगियों की संख्या अधिक है।
परीक्षण और सावधानियां क्यों जरूरी?
- नवजात शिशुओं का ब्लड टेस्ट और हीमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस जांच से इस रोग का पता लगाया जा सकता है।
- समय पर जांच से रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।
रोग से बचाव के उपाय
- संतुलित आहार, जैसे दाल, अंडे, मछली और बीन्स का सेवन करें।
- नशे से बचें।
- किसी भी परेशानी पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
आजीवन बीमारी, पर इलाज संभव
यह एक आजीवन बीमारी है, लेकिन स्टेम सेल प्रत्यारोपण और सही इलाज से लक्षणों को कम किया जा सकता है। निरंतर देखभाल के साथ रोगी सामान्य जीवन जी सकता है।
विशेष अपील
डॉ. मनोज पांडे (सीएमएचओ) ने जिलेवासियों से अपील की है कि विवाह से पहले वर-वधू की सिकलसेल रिपोर्ट का मिलान जरूर करें। इससे बीमारी के प्रसार को रोका जा सकता है।