इन यूनिट्स के तहत, किसानों के खेतों में नेपियर घास उगाई जाएगी और उसे एक हजार रुपए प्रति टन (यानि एक रुपए प्रति किलोग्राम) के हिसाब से खरीदा जाएगा। इससे किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी। इसके अलावा, बायो गैस बनाने के बाद बचा हुआ कचरा जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा, जो बाजार की मौजूदा कीमत से सस्ता होगा। इससे किसान जैविक खेती की ओर भी बढ़ेंगे।
इसके लिए बांसवाड़ा की 4 संस्थाओं ने जिला उद्योग केंद्र के साथ एमओयू साइन किया है। एक प्रोजेक्ट के लिए 10 बीघा जमीन की जरूरत होगी और इसकी लागत लगभग 10 करोड़ रुपए आएगी। इस प्रोजेक्ट से करीब 500 लोगों को रोजगार मिलेगा। बांसवाड़ा में 4 यूनिट्स लगेंगी, जिसमें से एक का निर्माण कार्य चल रहा है और बाकी तीन का भूमि कनर्वजन आदि पूरा हो चुका है। जनवरी में किसानों को बीज दिए जाएंगे और मई तक पहली यूनिट में उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है।
इस प्रोजेक्ट में भारत में बनी मशीनें इस्तेमाल की जाएंगी और गैस का उपयोग सीएनजी (वाहनों में) या पीएनजी (घरों में) के रूप में होगा।
घास उगाने की खास बात यह है कि एक बार बीजारोपण करने के बाद किसान 7 से 8 साल तक फसल ले सकते हैं, और एक साल में 4 बार तक कटाई की जा सकती है। एक एकड़ जमीन से 2 लाख तक की घास बेची जा सकती है। इस प्रोजेक्ट में छोटे और बड़े दोनों तरह के किसान शामिल हो सकते हैं।