हाईकोर्ट की एकलपीठ ने दुर्घटनाओं में मौत रोकने और प्रदूषण नियंत्रण के उपाय करने का आदेश दिया था। इस आदेश की पालना में देरी पर राज्य सरकार पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए मुख्य सचिव (CS) को तलब किया गया था।
हाल ही में खंडपीठ ने इस आदेश पर रोक लगाकर मुख्य सचिव को राहत दी। साथ ही सरकार ने इन उपायों पर चुप्पी साध ली है।
सरकार की दलील
सरकार ने खंडपीठ के सामने कहा कि यह मामला एक बीमा क्लेम से संबंधित था, जिसमें रोडवेज पक्षकार थी।
- एकलपीठ ने इसे जनहित याचिका (PIL) की तरह आदेश दिया, जो उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।
- महाधिवक्ता ने तर्क दिया कि एकलपीठ का आदेश वैध नहीं है।
खंडपीठ ने इन्हीं तर्कों के आधार पर मुख्य सचिव को बुलाने और सरकार पर जुर्माने के आदेश पर रोक लगा दी।
प्रश्न जो उठते हैं:
- एकलपीठ ने 9 साल पहले जो आदेश दिया था, सरकार ने उसे चुनौती क्यों नहीं दी?
- यदि मामला सार्वजनिक हित से जुड़ा था, तो सरकार ने खंडपीठ में सुनवाई का अनुरोध क्यों नहीं किया?
- दुर्घटनाओं में मौत और प्रदूषण रोकने के उपायों की वास्तविक प्रगति क्या है?
यह मामला अब दोबारा एकलपीठ के सामने पेश हुआ, लेकिन खंडपीठ द्वारा रोक लगाए जाने के कारण सुनवाई टाल दी गई।