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दृष्टिबाधितों की स्थिति: आंखों की रोशनी छिनी, न रोजगार, न मदद

भोपाल। ईश्वर ने आंखों की रोशनी छीन ली, और समाज व सरकार ने भी इन्हें अकेला छोड़ दिया है। प्रदेश में करीब 50 हजार दृष्टिबाधित लोग हैं, जिनमें से कई ब्रेल लिपि के जरिए पढ़ाई तो कर पाए, लेकिन बेरोजगारी के कारण उन्हें कोई रोजगार नहीं मिल पा रहा है।

ब्रेल लिपि में पढ़ाई करने वाले दृष्टिबाधित बच्चों को सामान्य बच्चों के साथ शिक्षा देने का प्रावधान तो है, लेकिन कई स्कूलों में ब्रेल पढ़ाने के लिए स्पेशल टीचर की कमी है। दृष्टिबाधितों के लिए काम करने वाली कल्याण धारा जन सेवा समिति के पदाधिकारियों के अनुसार, सरकार द्वारा दी जाने वाली मदद मात्र 600 रुपए प्रति माह है, जो एक दृष्टिबाधित व्यक्ति के लिए बहुत कम है। इसका मतलब है कि एक दिन का खर्च महज 20 रुपए में ही पूरा करना पड़ता है।

आरक्षण का भी कोई खास फायदा नहीं है। लखन लाल नरवरिया, जो ब्रेल लिपि से ग्रेजुएशन कर चुके हैं, अब नौकरी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। पप्पू निशात, जो पूरी तरह से दृष्टिहीन हैं, उन्होंने भी ब्रेल लिपि से कॉलेज की शिक्षा प्राप्त की, लेकिन अब प्राइवेट काम करने के लिए मजबूर हैं।

कई दृष्टिबाधित लोगों को पढ़ाई में मदद तो मिल रही है, लेकिन सरकार और समाज से पर्याप्त सहयोग नहीं मिल रहा है। दिव्यांगों के लिए आरक्षण का नाम मात्र ही है, और इसकी जांच जरूरी है। इस समस्या को हल करने के लिए समाज को भी जागरूक होने की आवश्यकता है।

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