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वर्चस्व की जंग: पहले शाही स्नान के लिए संतों के बीच हुए युद्ध, कुंभ और हरिद्वार में हुआ रक्तपात

प्रयागराज: कुंभ और महाकुंभ में शाही स्नान के लिए कई बार युद्ध हो चुके हैं। इन युद्धों की वजह थी—प्रथम स्नान का दावा करने के लिए विभिन्न संतों और अखाड़ों के बीच संघर्ष। “दशनाम नागा संन्यासी” नामक महंत लालपुरी की पुस्तक में इन संघर्षों का जिक्र मिलता है। इसमें मुगलकाल और ब्रिटिश हुकूमत के दौरान हुए पांच प्रमुख युद्धों का उल्लेख किया गया है, जिनमें पहली बार स्नान करने के लिए शाही लड़ाई हुई थी।

मुगल और ब्रिटिश काल में संघर्ष
कुंभ में स्नान क्रम का निर्धारण अखाड़ों की ताकत के आधार पर किया जाता था। उस समय सनातन संस्कृति को सरकारी सहायता नहीं मिलती थी, जिससे हर अखाड़ा अपनी शक्ति के अनुसार पहले स्नान का दावा करता था। मुगलों के समय 1621 के महाकुंभ में उदासी और वैरागी साधुओं के बीच लड़ाई हुई थी, जिसे जहांगीर ने देखा, लेकिन हस्तक्षेप नहीं किया।

ब्रिटिश हुकूमत के दौरान 1796 के हरिद्वार कुंभ में 14 हजार सिख सैनिकों ने नागा संन्यासियों पर हमला किया, जिसमें पांच हजार नागा संन्यासी शहीद हो गए थे। 1807 के हरिद्वार कुंभ में भी नागा संन्यासियों और वैरागियों के बीच खूनी संघर्ष हुआ, जिसमें हरकी पैड़ी खून से लाल हो गई थी।

अखाड़ों के शाही स्नान का क्रम
ब्रिटिश सरकार ने इन युद्धों और ऐतिहासिक घटनाओं के आधार पर 13 प्रमुख अखाड़ों के शाही स्नान के क्रम का निर्धारण किया। पहले शाही स्नान का अधिकार नागा संन्यासियों को दिया गया, दूसरे स्थान पर वैरागी साधु, तीसरे स्थान पर उदासीन परंपरा के साधु और अंत में निर्मल अखाड़े के साधु स्नान करते हैं।

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