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कोर्ट का अहम फैसला
राजस्थान हाईकोर्ट ने संविदा कर्मचारियों के मातृत्व अवकाश को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि मां, मां होती है – चाहे वह नियमित कर्मचारी हो या संविदा पर कार्यरत। संविदा कर्मचारियों के नवजात शिशुओं को भी नियमित कर्मचारियों के बच्चों के समान अधिकार मिलना चाहिए।
केवल 2 महीने का अवकाश देना गलत
कोर्ट ने संविदा कर्मचारियों को सिर्फ दो महीने का मातृत्व अवकाश देने को असंवैधानिक बताया। कोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का उल्लंघन माना।
17 साल पुराना मामला, महिला को मिला न्याय
बसंती देवी नाम की महिला, जो 2003 में नर्स ग्रेड-द्वितीय के पद पर नियुक्त हुई थी, ने 2008 में बेटी को जन्म दिया। उन्होंने 6 महीने के मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया, लेकिन संविदाकर्मी होने के कारण उन्हें सिर्फ 2 महीने की छुट्टी दी गई। उन्होंने इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दी और 17 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी।
अब हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए सरकार को आदेश दिया कि वे 4 महीने की शेष अवधि का वेतन 9% वार्षिक ब्याज के साथ दें।
संविधान ने दिया मातृत्व का अधिकार
कोर्ट ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) मां बनने के अधिकार को भी शामिल करता है। इसमें यह भी कहा गया कि बच्चे को अपनी मां का पूरा प्यार और देखभाल मिलना चाहिए।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- मातृत्व अवकाश सभी महिलाओं का अधिकार है, चाहे वे संविदा पर हों या नियमित।
- सरकार को कामकाजी महिलाओं के बच्चों की सेहत के लिए हर सुविधा देनी होगी।
- किसी महिला को मातृत्व अवकाश से वंचित करना उसके मौलिक अधिकारों के खिलाफ है।
निष्कर्ष
राजस्थान हाईकोर्ट का यह फैसला संविदा कर्मचारियों के लिए एक बड़ी जीत है। अब संविदा पर काम करने वाली महिलाओं को भी नियमित कर्मचारियों की तरह मातृत्व अवकाश का अधिकार मिलेगा।