देवगढ़। अगर हौसला बुलंद हो और मेहनत का जज्बा हो, तो कोई भी मुश्किल रास्ते की रुकावट नहीं बन सकती। यह कहानी है भंवरलाल रावल और उनकी दो बेटियों कविता रावल और पदमा रावल की, जिन्होंने गरीबी को पीछे छोड़ते हुए अपनी मेहनत और लगन से डॉक्टर बनने का सपना पूरा किया।
पिता ने किया संघर्ष, बेटियों ने रचा इतिहास
भंवरलाल रावल दूध बेचकर अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे, लेकिन उन्होंने अपनी बेटियों की शिक्षा के लिए हर मुमकिन कोशिश की। अपनी बड़ी बेटी कविता की पढ़ाई के लिए उन्होंने अपनी जमीन बेच दी, ताकि उसकी मेडिकल की पढ़ाई पूरी हो सके। आज उनकी मेहनत रंग लाई और दोनों बहनें डॉक्टर बनकर पूरे परिवार और समाज के लिए प्रेरणा बन गई हैं।
सफलता का सफर
कविता ने विदेश में एमबीबीएस की पढ़ाई की और फिर जयपुर में भारतीय मेडिकल परीक्षा की तैयारी की। हाल ही में उन्होंने एमसीआई परीक्षा पास कर सरकारी डॉक्टर बनने का सपना पूरा किया। वहीं, पदमा नीट परीक्षा में चयनित होकर बरेली (यूपी) के मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस कर रही हैं।
गुरु का योगदान
कविता और पदमा के सफलता के पीछे उनके गुरु कांस्टेबल डालूराम सालवी का भी अहम योगदान रहा। उन्होंने दोनों बहनों को पढ़ाई के लिए प्रेरित किया और जब भी जरूरत पड़ी, हर संभव मदद की। उनका मार्गदर्शन और बहनों की मेहनत आज सभी के लिए मिसाल बन गई है।
परिवार का समर्थन और त्याग
कविता और पदमा अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता और भाई को देती हैं। उनके पिता ने कहा, “हमने अपनी बेटियों की पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी। आज हमें गर्व है कि उन्होंने हमारा सपना सच कर दिखाया।”
शिक्षा का सफर
दोनों बहनों ने अपनी शुरुआती पढ़ाई विद्या निकेतन स्कूल और श्रीजी पब्लिक स्कूल, देवगढ़ से की। इसके बाद वे कोटा जाकर नीट की तैयारी करने लगीं। जहां पदमा का चयन हो गया, वहीं कविता ने विदेश जाकर एमबीबीएस करने का फैसला लिया।
भंवरलाल रावल और उनकी बेटियों की यह कहानी साबित करती है कि सच्ची मेहनत और समर्पण से हर सपना पूरा किया जा सकता है।