कानपुर का चमड़ा उद्योग संकट में
कभी ‘लेदर सिटी’ के नाम से मशहूर कानपुर का चमड़ा उद्योग आज कई मुश्किलों से जूझ रहा है। प्रदूषण नियंत्रण के कड़े नियम, कच्चे माल की कमी और बढ़ती लागत की वजह से कई टेनरियां बंद हो चुकी हैं या कम क्षमता पर चल रही हैं। हालात ऐसे हैं कि कई व्यापारी पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश और दूसरे इलाकों में कारोबार शिफ्ट करने की सोच रहे हैं।
उद्योग की नजरें यूपी बजट पर
केंद्रीय बजट 2025-26 में फुटवियर और लेदर सेक्टर के लिए नई प्रोत्साहन योजना लाई गई है, जिसमें 22 लाख रोजगार, 4 लाख करोड़ रुपये टर्नओवर और 1.1 लाख करोड़ रुपये के निर्यात का लक्ष्य रखा गया है। अब कानपुर के चमड़ा कारोबारी उत्तर प्रदेश सरकार के बजट 2025-26 से भी उम्मीद लगाए बैठे हैं।
क्या चाहते हैं उद्योग से जुड़े लोग?
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प्रदूषण नियंत्रण में मदद:
उद्योगपति चाहते हैं कि सरकार प्रदूषण नियमों को पूरा करने के लिए तकनीकी और आर्थिक मदद दे, जिससे टेनरियां बंद न हों। -
प्रोत्साहन योजनाएं:
सरकार से उम्मीद है कि आर्थिक पैकेज, सब्सिडी और टैक्स में छूट जैसी योजनाएं लाई जाएं। -
बुनियादी ढांचा:
चमड़ा उद्योग के लिए चमड़ा क्लस्टर, कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (CETP) जैसे जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश किया जाए। -
कौशल विकास:
स्थानीय युवाओं को उद्योग की जरूरतों के मुताबिक ट्रेनिंग दी जाए, जिससे वे इस सेक्टर में काम कर सकें।
वैश्विक पहचान
कानपुर के चमड़ा उत्पाद, खासकर जूते और सैडलरी, अमेरिका, यूरोप, बांग्लादेश, श्रीलंका और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में निर्यात होते हैं। साल 2022-23 में कानपुर से लगभग 6,000 करोड़ रुपये के चमड़ा उत्पादों का निर्यात हुआ, जिससे यह चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक बना।
चुनौतियां और उम्मीदें
कानपुर का चमड़ा उद्योग भले ही लंबा इतिहास रखता हो, लेकिन आज यह कई परेशानियों से जूझ रहा है। उद्योग को फिर से पहली जैसी पहचान और मजबूती देने के लिए सरकारी नीतियों और समर्थन की सख्त जरूरत है।