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एमपी के इस इलाके में बच्चों को जकड़ रही गंभीर बीमारी, चलना-फिरना भी हुआ मुश्किल

मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के बदरवास इलाके में मस्कुलर डिस्ट्रॉफी नामक गंभीर बीमारी तेजी से फैल रही है। इस बीमारी से 4 परिवारों के बच्चे पीड़ित हैं। जन्म के बाद 10 से 15 साल तक ये बच्चे सामान्य जीवन जीते हैं, लेकिन फिर अचानक उनकी मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं, जिससे वे चलने-फिरने में असमर्थ हो जाते हैं।

मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से जूझ रहे बच्चे

बदरवास में चार बच्चे इस बीमारी की चपेट में आ चुके हैं। ये बच्चे जन्म से लेकर 10-15 साल की उम्र तक सामान्य रहे, लेकिन इसके बाद उनकी मांसपेशियां कमजोर हो गईं, जिससे वे अब पूरी तरह दूसरों पर निर्भर हो गए हैं। उनके माता-पिता ने इलाज के लिए जमीन तक बेच दी, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ।

बीमारी से प्रभावित परिवारों की कहानी

1. दो बेटे दिव्यांग, पिता को बेचनी पड़ी 15 बीघा जमीन

वार्ड 11 के धनपाल उर्फ धन्नू परिहार के दो बेटे रितिक (14) और नैतिक (12) इस बीमारी से पीड़ित हैं। पहले वे सामान्य थे, लेकिन 8 साल की उम्र के बाद उनके पैरों की मांसपेशियां कमजोर होने लगीं। इलाज के लिए पिता ने 15 बीघा जमीन बेच दी, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। अब वे अपने तीसरे बेटे को लेकर चिंतित हैं कि कहीं उसे भी यह बीमारी न हो जाए।

2. माता-पिता के निधन के बाद भाई कर रहा देखभाल

वार्ड 6 के अंकित सोनी (29) इस बीमारी की वजह से चलने-फिरने तक में असमर्थ हो गए हैं। पहले वे 10वीं तक पढ़े, लेकिन फिर उनकी मांसपेशियां कमजोर हो गईं और अब वे पूरी तरह बिस्तर पर हैं। माता-पिता के निधन के बाद उनकी देखभाल उनके बड़े भाई योगेश कर रहे हैं

3. 10 साल की उम्र में शौर्य हुआ बीमार

वार्ड 5 के शौर्य वर्मा (18) को 10 साल की उम्र में यह बीमारी हुई। पहले वे हंसते-खेलते थे, लेकिन अब वे पूरी तरह असहाय हो गए हैं। माता-पिता का इकलौता बेटा होने के कारण उनकी चिंता और बढ़ गई है।

क्या है मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी?

मस्कुलर डिस्ट्रॉफी एक अनुवांशिक (वंशानुगत) बीमारी है, जो मांसपेशियों को कमजोर कर देती है।

  • यह 10 से 15 साल की उम्र में शुरू होती है
  • इसमें मांसपेशियां धीरे-धीरे कमजोर होती जाती हैं, जिससे मरीज चलने-फिरने में असमर्थ हो जाता है।
  • इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति की औसत उम्र 20 से 30 साल के बीच होती है

बदरवास के इन परिवारों के लिए यह बीमारी बहुत दुखदायी बन गई है, क्योंकि माता-पिता अपने बच्चों को स्वस्थ करने के लिए हर संभव प्रयास कर चुके हैं, लेकिन कोई इलाज काम नहीं आया

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