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मध्यप्रदेश: जंगल में घूमते समय हाथियों के पैरों में घाव हो जाते हैं, जो संक्रमण के कारण नासूर बन सकते हैं। नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय (Veterinary University) ने ऐसे बैक्टीरिया की पहचान और उनके इलाज पर शोध शुरू किया है, जिससे हाथियों की जान बचाई जा सके।
हाथियों के प्राकृतिक रहवास और बैक्टीरिया पर अध्ययन
- शोध में हाथियों के रहने वाले जंगलों और वहां मौजूद बैक्टीरिया की जांच की जा रही है।
- कुछ सैंपलों की एफएसएल (फॉरेंसिक साइंस लैब) में जांच होगी।
- इसके आधार पर संक्रमण फैलाने वाले बैक्टीरिया के खिलाफ सही एंटीबायोटिक्स का चयन किया जाएगा।
हाथियों के घाव धीरे भरते हैं
- हाथियों की त्वचा मोटी होती है, जिससे उनके घाव एक से दो महीने में भरते हैं।
- समय पर इलाज न मिलने से संक्रमण फैल सकता है, जिससे पैर काटने की नौबत आ सकती है या हाथी की मौत भी हो सकती है।
- जंगल में रहने वाले हाथियों की चोटों पर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता, जिससे उनकी स्थिति गंभीर हो जाती है।
मध्यप्रदेश में सिर्फ 70 हाथी
- मध्यप्रदेश के वन विभाग के अनुसार, कुल 70 हाथी जंगलों और वन विभाग के पास हैं।
- शोध कार्य डॉ. देवेंद्र पोधाडे के निर्देशन में शोधार्थी डॉ. दीक्षा लाडे द्वारा किया जा रहा है।
- कान्हा, बांधवगढ़ और पेंच नेशनल पार्क से हाथियों के स्वास्थ्य संबंधी नमूने एकत्रित किए गए हैं।
- 30 हाथियों के घावों में पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों तरह के बैक्टीरिया मिले हैं।
- अब शोध के जरिए यह पता लगाया जा रहा है कि कौन से एंटीबायोटिक्स इन बैक्टीरिया के खिलाफ सबसे कारगर होंगे।
शोध का उद्देश्य
इस शोध के जरिए हाथियों के इलाज के लिए एक प्रभावी प्रोटोकॉल तैयार किया जाएगा, जिससे उनके पैरों के घाव जल्दी ठीक हो सकें और संक्रमण से बचाव हो सके।