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शाहपुरा के मैड़ कुण्डला क्षेत्र में बलुई दोमट मिट्टी और मीठे पानी के कारण हर साल मटर की बड़ी पैदावार होती है। यहां उगाए जाने वाले मीठे मटर की मांग दिल्ली, गुजरात, मध्यप्रदेश और मुंबई तक है। इस अच्छी पैदावार से किसानों की आर्थिक स्थिति भी मजबूत हुई है।
किसानों को सरकारी मदद का इंतजार
मैड़ कुण्डला में हर साल करीब 60 करोड़ रुपये का मटर उत्पादन होता है, लेकिन किसानों को अभी भी सरकारी सहायता और सुविधाओं की जरूरत है। अगर सरकारी या निजी स्तर पर मटर को स्टोर करने की व्यवस्था हो जाए, तो किसानों को फायदा होगा और रोजगार के नए अवसर भी बनेंगे। इस क्षेत्र की 10 ग्राम पंचायतों – मैड़, नवरंगपुरा, पालड़ी, पुरावाला, आमलोदा, भामोद, जोधूला, तालवा, तेवड़ी और बडोदिया के गांवों में किसान लंबे समय से मटर की खेती कर रहे हैं। बगरू के बाद मैड़ कुण्डला में सबसे ज्यादा मटर की खेती होती है।
अच्छी मिट्टी, बढ़िया उत्पादन
इस क्षेत्र में 700 हेक्टेयर में मटर की खेती होती है। मिट्टी की अच्छी गुणवत्ता की वजह से प्रति हेक्टेयर 50 से 60 क्विंटल तक मटर का उत्पादन हो रहा है। अभी मटर की कीमत 15 से 20 रुपये प्रति किलो चल रही है।
हर दिन 50 लाख रुपये का मटर बिक रहा
मैड़ में एक अस्थाई सब्जी मंडी और पालड़ी तिराहे पर व्यापारी खुले में ही मटर की खरीदारी करते हैं। यहां हर दिन 150 टन तक मटर आता है, जिससे करीब 50 लाख रुपये का मटर रोजाना बिक रहा है। आसपास के गांवों – मैड़, जोधूला, राड़ावास, सताना, भोजेरा, तालवा, पालड़ी, हरीकिशनपुरा, नवरंगपुरा, बलेसर और बडोदिया से किसान अपने ट्रैक्टर, पिकअप और टेम्पो से मटर बेचने आते हैं।
सुविधाओं की कमी
किसानों का कहना है कि सरकार ने यहां कृषि उपज मंडी तो बनाई, लेकिन अभी तक चालू नहीं हो सकी। इस कारण उन्हें अपनी फसल अस्थाई मंडी में ही बेचनी पड़ रही है, जिससे सरकार को भी राजस्व का नुकसान हो रहा है।
अधिकारी की राय
सहायक कृषि अधिकारी अनिल बंसल का कहना है कि मैड़ कुण्डला क्षेत्र की मिट्टी और पानी मटर की खेती के लिए बहुत अनुकूल है। यहां मटर का सीजन मार्च तक चलता है।