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लुप्त होती परंपरा: अब कम दिखते हैं होली के बड़कुले

आधुनिकता के कारण खो रही पुरानी परंपराएं

भीलवाड़ा में होली से जुड़ी कई परंपराएं समय के साथ कम होती जा रही हैं। इन्हीं में से एक है गोबर के बड़कुले बनाने की परंपरा। पहले महिलाएं और लड़कियां होली से कई दिन पहले गाय के गोबर से बड़कुले बनाती थीं, जिन्हें होलिका दहन के समय पूजा के बाद जलाया जाता था। लेकिन अब यह परंपरा धीरे-धीरे खत्म हो रही है। अब केवल कुछ बुजुर्ग महिलाएं और गिनी-चुनी लड़कियां ही बड़कुले बनाती हैं।

बड़कुले का महत्व

  • बड़कुले बनाने में सिर्फ गाय के गोबर का इस्तेमाल होता है।
  • होलिका दहन से पहले इनकी पूजा की जाती है और फिर भाइयों के सिर पर से सात बार घुमाकर होली में डाला जाता है।
  • मान्यता है कि ऐसा करने से सभी बाधाएं और बुरी शक्तियां दूर होती हैं
  • बड़कुले को आकर्षक बनाने के लिए रस्सी से माला बनाई जाती है, जिसे होलिका दहन में डाला जाता है।

सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत

  • गोबर से ढाल और तलवार भी बनाई जाती हैं।
  • पूर्णिमा के दिन इनकी पूजा के बाद दहन किया जाता है
  • पंडित अशोक व्यास के अनुसार, गाय का गोबर शुभता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है।
  • जब इसे जलाया जाता है, तो निकलने वाला धुआं नकारात्मक शक्तियों को दूर करता है
  • यही कारण है कि यज्ञ और हवन में भी गाय के गोबर का उपयोग किया जाता है।

अब आधुनिकता के कारण यह परंपरा धीरे-धीरे लुप्त हो रही है, लेकिन बुजुर्गों का मानना है कि यदि युवा इसे अपनाएं, तो यह फिर से जीवित हो सकती है।

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