सार:
पंजाब में इस साल अब तक 872 पराली जलाने के मामले सामने आ चुके हैं। लेकिन मोगा के किसान जगमोहन सिंह 15 साल से पराली नहीं जलाते। उनके पास 60 एकड़ ज़मीन है, और वे पर्यावरण की सुरक्षा के लिए पराली को आग नहीं लगाते।
विस्तार:
पंजाब में पराली जलाने के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। धान की पराली जलाने से धुएं के कारण लोगों की सेहत पर खतरा मंडरा रहा है और पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। इसके अलावा, पराली जलाने से खेत की मिट्टी पर भी बुरा असर पड़ता है। सरकार किसानों को पराली न जलाने के लिए जागरूक करने की कोशिश कर रही है।
जगमोहन सिंह, जो मोगा जिले के गांव जे सिंह वाला के निवासी हैं, ने बताया कि उन्होंने 15 साल पहले धान की पराली जलाना बंद कर दिया था। अब वे कटाई के बाद खड़ी पराली में पलवार लगाकर आलू की बिजाई करते हैं। इसके साथ ही, वे धान की सीधी बिजाई भी करते हैं।
जगमोहन का कहना है कि इस तरीके से खाद की मात्रा कम करनी पड़ती है और फसल भी अच्छी होती है। इससे मिट्टी की जल धारण क्षमता 5 से 10 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
उन्होंने यह भी बताया कि पराली को जमीन में मिलाकर वे आलू की फसल से अधिक कमाई कर रहे हैं, क्योंकि आलू की फसल गेहूं के मुकाबले तीन गुना ज्यादा होती है।
जगमोहन सिंह ने सभी किसानों से अपील की कि वे पराली को न जलाएं, ताकि पंजाब का पर्यावरण साफ रहे और सभी किसान मिलकर पंजाब को पराली के धुएं से मुक्त रखें।
पराली जलाने के मामले:
13 अक्टूबर तक पंजाब में पराली जलाने के 872 मामले दर्ज किए जा चुके हैं। रविवार को एक दिन में 162 नए मामले आए। पिछले साल इस दिन 120 और 2023 में 154 मामले दर्ज हुए थे।
मॉनीटरिंग और जागरूकता:
पीपीसीबी के चेयरमैन आदर्श पाल विग ने बताया कि विभिन्न विभागों के अधिकारी पराली जलाने की घटनाओं की मॉनीटरिंग कर रहे हैं। किसानों को जागरूक किया जा रहा है, और पराली जलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है।