जयपुर में एक ऐसा मंदिर है, जहां भगवान विष्णु के भावी दसवें अवतार भगवान कल्कि की पूजा की जाती है। देश में लाखों मंदिर हैं, लेकिन इस मंदिर की खासियत इसे अलग बनाती है।
राजा सवाई जयसिंह ने 1739 में सिरह ड्योढ़ी दरवाजे के सामने कल्कि भगवान का मंदिर बनवाया था। इस मंदिर में मां लक्ष्मीजी के साथ भगवान कल्किजी विराजमान हैं।
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, जब भी धरती पर पाप बढ़ता है, तब भगवान विष्णु अवतार लेते हैं। इसके प्रमाण वामन, नृसिंह, मत्स्य, राम और कृष्ण के अवतारों में मिलते हैं। भगवान विष्णु के दस अवतारों का वर्णन शास्त्रों में मिलता है, जिनमें से नौ अवतार हो चुके हैं और कलयुग में कल्कि का अवतार होना बाकी है। जयपुर का यह मंदिर हवामहल के सामने स्थित है।
इस मंदिर में भगवान कल्किजी मां लक्ष्मीजी के साथ विराजमान हैं। कहा जाता है कि कल्कि का अवतार हजारों वर्षों के बाद होगा, लेकिन उनकी परिकल्पना पहले ही की जा चुकी है। पुराणों के अनुसार, कलयुग समाप्त होने पर भगवान विष्णु कल्कि अवतार लेंगे और घोड़े पर सवार होकर तलवार से शत्रुओं का नाश करेंगे।
राजा सवाई जयसिंह ने इस मंदिर का निर्माण इसलिए करवाया क्योंकि उन्हें बताया गया था कि कल्कि अवतार हजारों वर्षों बाद होगा। मंदिर में भगवान विष्णु की सुंदर संगमरमर की मूर्ति है, जिसके सामने संगमरमर का अश्व है। माना जाता है कि कल्कि के घोड़े के एक पैर में घाव है, जो कलयुग के अंत में अपने आप भर जाएगा।
यह मंदिर लगभग 300 साल पुराना है और इसे भगवान विष्णु के 10वें अवतार को समर्पित कर बनाया गया है। गर्भगृह के संगमरमर के चौखटों पर भगवान विष्णु के 9 अवतार उकेरे गए हैं। दाहिनी ओर भगवान ब्रह्मा और बाईं ओर नंदी पर शिव और पार्वती बैठे हैं।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, कलियुग में जब पाप बढ़ जाएगा, तब भगवान विष्णु कल्कि रूप में अवतार लेंगे और दुष्टों का नाश कर नए युग की शुरुआत करेंगे।