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सुप्रीम कोर्ट ने आज एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सभी निजी स्वामित्व वाली संपत्तियाँ सार्वजनिक संपत्ति नहीं हो सकतीं, जिन्हें सरकार अपने नियंत्रण में ले सकती है। यह फैसला भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में नौ न्यायाधीशों की पीठ ने 8-1 के बहुमत से सुनाया।
तीन फैसले लिखे गए मुख्य न्यायाधीश ने अपने और छह सहयोगियों के लिए एक फैसला लिखा, जबकि न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने एक समवर्ती लेकिन अलग फैसला प्रस्तुत किया। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने असहमति जताई।
यह मामला संविधान के अनुच्छेद 31सी से संबंधित है, जो राज्य द्वारा बनाए गए कानूनों की रक्षा करता है, जिससे सरकारों को कानून और नीतियां बनाते समय दिशा-निर्देश मिलते हैं। अनुच्छेद 39बी में प्रावधान है कि राज्य अपनी नीतियाँ इस प्रकार बनाएगा कि समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण सर्वजन हिताय हो।
किसी की निजी संपत्ति नहीं हो सकती पब्लिक मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि “क्या 39बी में उपयोग किए गए समुदाय के भौतिक संसाधनों में निजी स्वामित्व वाले संसाधन शामिल हैं?” इसके जवाब में उन्होंने कहा कि निजी स्वामित्व वाले संसाधन केवल इसलिए समुदाय का भौतिक संसाधन नहीं हो सकते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि संसाधनों की प्रकृति, विशेषताएँ, और उनकी कमी जैसे कारकों को ध्यान में रखते हुए ही यह निर्धारित किया जा सकता है कि वे सार्वजनिक ट्रस्ट सिद्धांत के तहत आते हैं या नहीं।
46 साल बाद पलटा फैसला यह फैसला 1977 में आए एक निर्णय को पलटता है, जब सात न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि निजी स्वामित्व वाली संपत्तियाँ सार्वजनिक संसाधनों में नहीं आतीं। उस समय न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर ने अल्पमत में विचार रखा था कि सार्वजनिक और निजी दोनों संसाधन अनुच्छेद 39(बी) के तहत समुदाय के भौतिक संसाधनों में आते हैं।