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राजस्थान के नागौर जिले में लगने वाला मिर्ची मेला अपनी शुद्धता के लिए मशहूर है। हर साल यहां दूर-दराज से लोग मिर्च और मसाले खरीदने आते हैं। इस मेले में सालभर के लिए एक साथ मिर्च खरीदने की परंपरा है।
मसाले की दुकानों पर पिसाई की सुविधा
पहले इस मेले में सिर्फ सूखी लाल मिर्च मिलती थी, लेकिन अब धनिया, हल्दी, राई जैसे मसाले भी मिलने लगे हैं। खास बात यह है कि व्यापारी अपनी अस्थायी दुकानों के आगे मसाले पीसने की चक्कियां भी लगाते हैं, जिससे ग्राहक अपनी आंखों के सामने पिसा हुआ शुद्ध मसाला ले जा सकते हैं।
ग्राहकों का भरोसा
- अणदाराम जांगू (अलाय से आए खरीदार) कहते हैं, “गांव में मिर्च तो मिलती है, लेकिन शुद्धता की गारंटी नहीं होती। मैं हर साल नागौर आकर यहीं से मिर्च खरीदता हूं।”
- हुक्मीचंद चौहान (नागौर निवासी) बताते हैं, “बाजार में मिलने वाली मिर्च में मिलावट की आशंका रहती है। इसलिए मैं पिछले 18 सालों से यहीं से मिर्च खरीदता हूं।”
- कंचन (नागौर निवासी) कहती हैं, “20 साल से इस मेले से मिर्च खरीद रही हूं, क्योंकि यहां शुद्धता की गारंटी होती है।”
जोधपुर जिले से आती है देसी मिर्च
व्यापारियों का कहना है कि सबसे अच्छी देसी मिर्च जोधपुर जिले के पीपाड़, बिराई और आसपास के गांवों में उगाई जाती है। हालांकि, पहले की तुलना में अब उत्पादन 25% कम हो गया है, जिससे देसी मिर्च महंगी हो गई है।
छह महीने तक चलता है मिर्ची बाजार
पहले यह बाजार पशु मेले के खत्म होने के बाद लगता था, लेकिन अब पशु मेले के साथ ही शुरू हो जाता है और करीब छह महीने तक चलता है।
देसी मिर्च का स्वाद और महत्व
- गणपतराम टाक (मिर्ची व्यापारी, पीपाड़ सिटी) कहते हैं, “पीपाड़, बिराई और जोधपुर की मिर्च टॉप क्वालिटी की होती है, जो खाने और स्वाद में बेहतरीन होती है।”
- कुछ लोग दूसरे राज्यों की मिर्च गांवों में बेचते हैं, जिससे देसी मिर्च का बाजार थोड़ा मंदा पड़ गया है।
नागौर के मिर्ची मेले की पहचान
यह मेला सिर्फ नागौर ही नहीं, बल्कि राजस्थान के अन्य जिलों के लोगों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन चुका है। कई लोग यहां से मिर्च खरीदकर अपने रिश्तेदारों को भी भेजते हैं। शुद्धता और भरोसे के कारण, यह मेला हर साल बड़ी संख्या में ग्राहकों को आकर्षित करता है।