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राजस्थान विधानसभा के सत्रों को लेकर बने नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। नियमों के अनुसार, साल में तीन सत्र होना जरूरी है और उन्हें मिलाकर कम से कम 60 दिन चलना चाहिए। लेकिन हकीकत यह है कि अब तो साल में दो सत्र भी मुश्किल से हो रहे हैं, और वे भी 30 दिन से ज्यादा नहीं चल पाते।
सत्रों की अनदेखी क्यों हो रही?
करीब 15 साल पहले इस समस्या के समाधान के लिए संविधान संशोधन की बात हुई थी, ताकि सरकारें सत्र चलाने के लिए बाध्य हो सकें। लेकिन यह मुद्दा सिर्फ चर्चा तक ही सीमित रह गया।
राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी के अनुसार, जयपुर में पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में यह तय किया गया था कि विधानसभा सत्रों को अनिवार्य करने के लिए संविधान संशोधन किया जाए। दिल्ली में इस पर चर्चा भी हुई थी, लेकिन सरकार बदलने के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष दीपेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा कि बड़े राज्यों की विधानसभा को साल में 60 दिन और छोटे राज्यों को 40 दिन चलाने का नियम है, लेकिन सरकारें पर्याप्त विषय नहीं देतीं, जिससे सदन ज्यादा दिन नहीं चल पाता।
पिछले 20 सालों में सत्रों का हाल
वर्ष 2003 से 2023 के बीच राजस्थान में किसी भी सरकार ने हर साल तीन सत्र नहीं बुलाए। सिर्फ तीन साल ऐसे रहे हैं, जब तीन सत्र बुलाए गए, लेकिन तब भी 60 दिन पूरे नहीं हुए।
- 2009: 13वीं विधानसभा में तीन सत्र हुए, लेकिन कुल 26 दिन ही चले।
- 2014: 14वीं विधानसभा में तीन सत्र हुए, लेकिन कुल 30 दिन ही चले।
- 2019: 15वीं विधानसभा में तीन सत्र हुए, लेकिन कुल 32 दिन ही चल पाए।
आगे क्या करना होगा?
राजस्थान विधानसभा को उसके नियमों के अनुसार चलाने के लिए सरकार को जरूरी विषयों पर ध्यान देना होगा, ताकि सदन अधिक समय तक चले और जनता के मुद्दों पर चर्चा हो सके।