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लड़कियों की जींस की जेबें छोटी क्यों होती हैं? जानिए इसकी पूरी कहानी

क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि महिलाओं की जींस की जेबें बहुत छोटी होती हैं या फिर सिर्फ दिखाने के लिए बनाई जाती हैं? वहीं, पुरुषों की जींस में आसानी से मोबाइल, पर्स और दूसरी चीजें रखी जा सकती हैं। यह सिर्फ डिजाइन की बात नहीं, बल्कि इसके पीछे सदियों पुराना एक इतिहास छिपा है। आइए जानते हैं कि महिलाओं के कपड़ों में जेबों की यह असमानता कैसे और कब शुरू हुई।

जब कपड़ों में जेब नहीं होती थी

बहुत पहले किसी भी कपड़े में जेब नहीं होती थी। पुरुष और महिलाएं दोनों ही छोटी पोटलियों या बैग्स का इस्तेमाल करते थे, जिन्हें कमर पर रस्सी से बांधकर रखा जाता था। उस समय महिला और पुरुषों में कोई भेदभाव नहीं था, लेकिन जैसे-जैसे समय बदला, महिलाओं को इस सुविधा से दूर कर दिया गया।

17वीं सदी: जेबों की शुरुआत लेकिन सिर्फ पुरुषों के लिए

  • 17वीं सदी में कपड़ों में जेबें सिलने का चलन शुरू हुआ, लेकिन यह सुविधा केवल पुरुषों के लिए थी।
  • पुरुषों की कोट और पैंट में जेबें सिल दी जाती थीं, जिससे वे आसानी से सामान रख सकते थे।
  • महिलाओं को अलग बैग का इस्तेमाल करना पड़ता था, जिसे वे कमर पर बांधकर पेटीकोट के अंदर छुपाकर रखती थीं।
  • इससे महिलाओं को सार्वजनिक जगहों पर सामान निकालने में परेशानी होती थी।

19वीं सदी: महिलाओं ने किया विरोध

  • 19वीं सदी के अंत तक महिलाओं को यह असमानता समझ आने लगी और उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई।
  • लंदन में ‘रैशनल ड्रेस सोसायटी’ नाम की संस्था बनी, जिसने महिलाओं के कपड़ों को आरामदायक और सुविधाजनक बनाने की मांग की।
  • उनकी सबसे बड़ी मांगों में से एक यह थी कि महिलाओं के कपड़ों में जेबें होनी चाहिए ताकि वे आत्मनिर्भर महसूस कर सकें।

20वीं सदी: महिलाओं ने पैंट पहनना शुरू किया

  • 1900 के शुरुआती दशक में महिलाओं ने पैंट पहनना शुरू किया, जिनमें जेबें भी दी जाती थीं।
  • 1910 में सफ्राजेट सूट्स आए, जिनमें छह जेबें होती थीं।
  • दोनों विश्वयुद्ध (1914-1945) के दौरान महिलाओं को बाहर काम करने की जरूरत पड़ी, जिससे उनके कपड़ों को सुविधाजनक बनाया गया और उनमें जेबें दी जाने लगीं।

21वीं सदी: फिर बढ़ी समस्या

आज के समय में महिलाओं की जींस और दूसरे कपड़ों में फिर से छोटी या दिखावटी जेबें बनाई जाने लगी हैं। फैशन इंडस्ट्री में महिला कपड़ों में सुविधा से ज्यादा स्टाइल पर ध्यान दिया जाता है। डिजाइन इस तरह बनाए जाते हैं कि कपड़े टाइट और फॉर्म-फिटिंग दिखें, जिससे जेबें छोटी रह जाती हैं।

हैंडबैग इंडस्ट्री का भी असर

  • महिलाओं के कपड़ों में छोटी जेबों का एक बड़ा कारण ‘हैंडबैग इंडस्ट्री’ को भी माना जाता है।
  • बड़े ब्रांड्स को लगता है कि अगर महिलाओं की जेबें बड़ी होंगी तो हैंडबैग्स की बिक्री कम हो सकती है।
  • इसलिए महिलाओं के कपड़ों में जेबों को छोटा रखा जाता है ताकि वे बैग खरीदें।

निष्कर्ष

महिलाओं के कपड़ों में जेबों का छोटा या नकली होना सिर्फ फैशन का मामला नहीं, बल्कि सदियों पुरानी सोच का नतीजा है। महिलाओं ने इस भेदभाव के खिलाफ पहले भी आवाज उठाई थी और आगे भी इसे बदलने की जरूरत है।

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