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होला-मोहल्ला: सिख वीरता और परंपरा का पर्व

होला-मोहल्ला सिख समुदाय का एक ऐतिहासिक त्योहार है, जिसे गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1701 में शुरू किया था। यह पर्व साहस, वीरता और सिख संस्कृति का प्रतीक है। इसे होली के अगले दिन मनाया जाता है और आनंदपुर साहिब में विशेष आयोजन होते हैं।

होला-मोहल्ला का इतिहास

गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस पर्व की शुरुआत सिख योद्धाओं के सैन्य कौशल को बढ़ावा देने के लिए की थी। ‘होला’ शब्द संस्कृत के ‘होलिका’ से लिया गया है, जबकि ‘मोहल्ला’ अरबी शब्द ‘महल्ला’ से, जिसका मतलब संगठित जुलूस होता है। आनंदपुर साहिब में इस अवसर पर योद्धाओं ने अपने युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया।

होला-मोहल्ला की खासियतें

  • वीरता का प्रदर्शन: निहंग सिख घुड़सवारी, तलवारबाजी, नेजाबाजी और गतका (परंपरागत युद्धकला) का प्रदर्शन करते हैं।
  • रंगों का त्योहार: इसमें भी होली की तरह फूलों और गुलाल की बौछार की जाती है।
  • नगर कीर्तन: पंज प्यारे जुलूस का नेतृत्व करते हैं और निहंग सिख अपने करतब दिखाते हैं।
  • लंगर सेवा: इस दौरान विशाल लंगर आयोजित किया जाता है, जहां सभी को नि:शुल्क भोजन मिलता है।

होला-मोहल्ला 2025 का आयोजन

इस वर्ष 14 मार्च 2025 को लखनऊ के गुरुद्वारा श्री गुरु तेग बहादुर साहिब, यहियागंज में होला-मोहल्ला का आयोजन होगा।

  • 14 मार्च को शाम 7:00 बजे से 11:00 बजे तक और
  • 15 मार्च को सुबह 5:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक कार्यक्रम होंगे।
    गुरुद्वारा सचिव मनमोहन सिंह हैप्पी ने बताया कि इस आयोजन में श्री दरबार साहिब, अमृतसर से जगतार सिंह, सुरेंद्र सिंह और दिल्ली से आनंद बंधु विशेष रूप से शामिल होंगे।

बढ़ती जागरूकता

अब होला-मोहल्ला सिर्फ सिख समुदाय तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे अन्य समुदायों से भी लोग देखने और समझने आते हैं। यह पर्व भाईचारे, साहस और सेवा की भावना को प्रोत्साहित करता है और समाज को एकता का संदेश देता है।

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