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राजस्थान में खास अंदाज में मनाई जाती है आदिवासी समाज की होली

आबूरोड। राजस्थान के आदिवासी गरासिया समाज में होली का त्योहार बड़े उत्साह और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। यहां के लोग पुरानी परंपराओं को आज भी जीवंत रखे हुए हैं। खासतौर पर भाखर और आसपास के आदिवासी इलाकों में इस पर्व की जबरदस्त धूम होती है।

होली की तैयारियां हफ्तेभर पहले शुरू

यहां होली की तैयारियां सात दिन पहले से शुरू हो जाती हैं। गांव-गांव में ढोल की धुन पर पारंपरिक परिधान में नृत्य करते पुरुष और महिलाएं दिखते हैं। इनका नृत्य और गीत हर किसी को आकर्षित करता है।

होली मनाने का खास तरीका

  • होलिका दहन के दिन गांव के सभी लोग एक-एक लकड़ी लेकर दहन स्थल पर पहुंचते हैं।
  • शाम को होली सजाई जाती है, और रात में पंच पटेल नारियल अर्पित कर होली जलाते हैं
  • इस दौरान समाज के लोग सात तरह के अनाज लेकर होलिका की परिक्रमा करते हैं।
  • नवविवाहित जोड़े थाल में भोग लेकर आते हैं और इसे सबमें बांटते हैं।
  • पूरी होली जलने के बाद, उपवासधारी लोग देवी-देवताओं की पोशाक पहनकर जलते अंगारों से गुजरते हैं और उपवास तोड़ते हैं।
  • दूसरे दिन होली खेली जाती है, जिसमें पारंपरिक गेर नृत्य और पलास के फूलों से बने रंगों का इस्तेमाल किया जाता है।

ढोल की खास धुन पर होता है नृत्य

आदिवासी समाज में ढोल बजाने की अलग-अलग शैली होती है।

  • होलिका दहन, गेरिया नृत्य, बाबा नृत्य, ज्वार नृत्य और ढूंढ कार्यक्रम के दौरान ढोल की धुन अलग-अलग होती है।
  • अगर नृत्य और गीत के अनुसार सही धुन नहीं बजे, तो लोग नृत्य करना बंद कर देते हैं।

चूरमा-मालपुआ का स्वाद

होली के खास मौके पर चूरमा और मालपुआ आदिवासी समाज के पसंदीदा व्यंजन होते हैं।

  • ज्यादातर घरों में ये मिठाइयाँ बनाई जाती हैं।
  • कुछ लोग खीर भी बनाते हैं
  • समय के साथ बाजार से मिठाई खरीदने की प्रवृत्ति भी बढ़ी है, खासतौर पर नौकरीपेशा लोग ऐसा करते हैं।

अच्छी फसल के लिए बीजों की परंपरा

आदिवासी समाज में मान्यता है कि होलिका की पूजा में उपयोग किए गए अनाज के बीज खेत में बोने से अच्छी फसल होती है। इसलिए, बारिश की फसल के समय इन बीजों का उपयोग किया जाता है।

शुभ मुहूर्त नहीं, चंद्रमा की स्थिति देखकर जलती है होलिका

इस समाज में होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त नहीं देखा जाता।

  • जब चंद्रमा सिर के ठीक ऊपर आ जाए और परछाई दिखना बंद हो जाए, तभी होलिका दहन किया जाता है।

इस तरह, आदिवासी समाज की होली बाकी समाजों से बिल्कुल अलग और अनोखी होती है, जिसमें परंपराओं और रीति-रिवाजों का खास महत्व होता है।

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