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होलाष्टक के दौरान आठ दिनों तक शुभ कार्यों पर रोक होती है। यह अवधि फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक रहती है। इस समय विवाह, नामकरण, मुंडन और गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं।
होलिका दहन और उसकी कथा
शासकीय कन्या प्राथमिक शाला, देवकर में होलिका दहन कार्यक्रम हुआ, जहां बच्चों ने अपने घरों से लकड़ियां लाकर होलिका बनाई। इसके साथ ही स्कूल के कचरे को जलाकर स्वच्छता का संदेश दिया।
- प्रधान पाठिका गिरिजा पटेल ने बच्चों को होलिका दहन की पौराणिक कथा सुनाई।
- उन्होंने बताया कि अच्छाई (प्रह्लाद) ने बुराई (होलिका) पर जीत हासिल की, जिससे हमें अपने जीवन में भी बुराइयों से जीतने की प्रेरणा मिलती है।
- बच्चों ने रंगोली बनाई और चार्ट तैयार कर होलिका दहन का महत्व बताया।
होलाष्टक का ज्योतिषीय और पौराणिक महत्व
- पं. श्रीनिवास द्विवेदी के अनुसार, होलाष्टक के दौरान आठ ग्रह उग्र स्थिति में होते हैं, जिससे इस समय शुभ कार्यों में बाधा आती है।
- पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव की तपस्या भंग करने पर उन्होंने कामदेव को अपने तीसरे नेत्र से भस्म कर दिया।
- इससे पूरे संसार में शोक फैल गया और उनकी पत्नी रति ने शिव से कामदेव को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की।
- भगवान शिव ने द्वापर युग में कामदेव को पुनर्जन्म देने का वरदान दिया।
पूर्णिमा को समाप्त होगा होलाष्टक
होलाष्टक का समापन पूर्णिमा के दिन होता है, जिसके बाद शुभ कार्य फिर से शुरू किए जा सकते हैं।