सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में नदियों के तटीय इलाकों और जलभराव वाले क्षेत्रों पर हो रहे अवैध निर्माण के खिलाफ दायर जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई के लिए सहमति दी है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले में संबंधित विभागों को नोटिस जारी करते हुए तीन हफ्तों के भीतर जवाब मांगा है। इन विभागों में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, जलशक्ति मंत्रालय, जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, केंद्रीय जल आयोग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड शामिल हैं।
अवैध निर्माण से बढ़ रही बाढ़ की समस्या
पीआईएल में कहा गया है कि नदियों, सहायक नदियों और नहरों के किनारे हो रहे अवैध निर्माण के कारण बाढ़, जलभराव और अन्य प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ गया है। उदाहरण के तौर पर हिमाचल प्रदेश में दो साल पहले आई बाढ़ का कारण भी अवैध निर्माण को बताया गया है।
अतिक्रमण से कई नदियां हो चुकी हैं विलुप्त
अधिवक्ता आकाश वशिष्ठ द्वारा दायर इस याचिका में यह भी बताया गया है कि पिछले दो दशकों में अतिक्रमण के कारण नदियों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। इसके चलते कई नदियां विलुप्त हो चुकी हैं और कई अन्य खतरे में हैं। इस अतिक्रमण ने जलवायु परिवर्तन में योगदान दिया है, जिससे बादल फटने, ग्लेशियरों के पिघलने और अचानक भारी बारिश जैसी आपदाएं हो रही हैं।
भविष्य की जल सुरक्षा पर खतरा
पीआईएल में यह चेतावनी दी गई है कि अगर समय रहते अवैध निर्माणों पर रोक नहीं लगी तो भविष्य में देश की जल सुरक्षा और आने वाली पीढ़ियों के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।